कीज़ड़ी उत्खनन में नया खुलासा: वैगई नदी की बाढ़ से 1,155 वर्ष पूर्व दब गया था प्राचीन नगर
तमिलनाडु के सिवगंगा जिले में वैगई नदी के किनारे स्थित कीज़ड़ी (Keezhadi) पुरातात्विक स्थल पर हुए उत्खनन में ऐसे प्रमाण मिले हैं जो संगम युगीन सभ्यता और शहरी जीवन के वर्णनों से मेल खाते हैं। हाल ही में एक वैज्ञानिक अध्ययन ने इस ऐतिहासिक स्थल के दफन होने का कारण और समय स्पष्ट किया है—यह लगभग 1,155 वर्ष पूर्व वैगई नदी की एक भीषण बाढ़ के कारण हुआ।
कीज़ड़ी स्थल और उसकी भौगोलिक स्थिति
कीज़ड़ी, वैगई नदी के बाढ़ क्षेत्र में स्थित एक मिट्टी के टीले पर स्थित है। यहाँ की ईंट की संरचनाएँ, नालियाँ, फर्श और मिट्टी के बर्तन एक सुनियोजित नगरीय व्यवस्था के संकेत देते हैं। ये सभी अवशेष रेत, सिल्ट और चिकनी मिट्टी की परतों के नीचे दबे हैं, जो सतह से दिखाई नहीं देते।
हालाँकि यहाँ से प्राप्त अवशेष प्राचीन मानव बसावट को दर्शाते हैं, लेकिन यह जानना ज़रूरी था कि यह स्थल कब और कैसे दब गया, और मानव गतिविधि कब बंद हुई।
OSL डेटिंग: प्रकाश से समय मापने की तकनीक
तमिलनाडु पुरातत्व विभाग और फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों ने ऑप्टिकली स्टिम्युलेटेड ल्यूमिनेसेंस (OSL) तकनीक का उपयोग करके इन अवसादों की तिथि निर्धारित की। यह तकनीक यह मापती है कि किसी खनिज कण को आखिरी बार कब सूर्य प्रकाश मिला था।
दो गड्ढों से लिए गए चार नमूनों के विश्लेषण से यह पता चला कि बाढ़ से आए अवसाद की परतें अलग-अलग समय की हैं—नीचे की परतें पुरानी हैं और ऊपर की नई, जो क्रमिक बाढ़ और तलछट जमा होने की पुष्टि करती हैं।
बाढ़ के प्रमाण और नगरी के दफन होने का समय
OSL विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकला कि लगभग 1,155 वर्ष पूर्व वैगई नदी की एक उच्च-ऊर्जा बाढ़ ने इस स्थल को दफन कर दिया। इसके बाद शांति से तलछट की परतें जमती रहीं। संरचनाओं के ऊपर पाई गई बारीक सिल्टी मिट्टी और नीचे की मोटे रेत की परतें इस जल प्रलय की तीव्रता और क्रम को दर्शाती हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
• कीज़ड़ी, तमिलनाडु में वैगई नदी के बाढ़ क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन पुरातात्विक स्थल है।
• OSL (Optically Stimulated Luminescence) तकनीक से यह मापा जाता है कि किसी तलछट को आखिरी बार कब सूर्य प्रकाश मिला था।
• इस अध्ययन में बाढ़ से आई मिट्टी की तिथि निर्धारित की गई, न कि संरचनाओं की निर्माण तिथि।
• नदियों की बाढ़ अक्सर बस्तियों को दफन कर मानव बसावट को प्रभावित करती है।
जलवायु परिवर्तन और पुरातात्विक समझ
यह अध्ययन होलोसीन काल के अंतर्गत दक्षिण भारत में जलवायु परिवर्तन की व्यापक तस्वीर में फिट बैठता है, जिसमें नदियों का बहाव मार्ग बार-बार बदलता रहा है। वर्तमान में वैगई नदी कीज़ड़ी से कई किलोमीटर दूर बह रही है, जो भौगोलिक परिवर्तन का प्रमाण है।
इस शोध से पुरातत्वविदों को कीज़ड़ी की बसावट के कालक्रम और पर्यावरणीय कारणों को समझने में मदद मिलेगी, जिससे भविष्य की खुदाई योजनाएँ अधिक सटीक हो सकेंगी। यह अध्ययन इस बात को रेखांकित करता है कि किस प्रकार प्राकृतिक शक्तियाँ प्राचीन सभ्यताओं के उभार और संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।