किलिमंजारो पर्वत पर जैव विविधता का संकट: जलवायु नहीं, भूमि उपयोग परिवर्तन है मुख्य कारण
अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी, किलिमंजारो पर्वत, न केवल एक भौगोलिक चमत्कार है, बल्कि लाखों लोगों के लिए जीवनदायिनी वन और कृषि संसाधनों का भी स्रोत है। परंतु एक सदी में इस पर्वत की निचली ढलानों से 75 प्रतिशत प्राकृतिक वनस्पति प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन से यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि इस जैव विविधता के संकट का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन नहीं, बल्कि मानव जनित भूमि उपयोग परिवर्तन है।
अध्ययन की मुख्य जानकारी
यह शोध जर्मनी के बायरुथ विश्वविद्यालय के एंड्रियास हेम्प और उनके सहयोगियों द्वारा किया गया, जो 1911 से 2022 तक के आंकड़ों का विश्लेषण करता है। अध्ययन में ऐतिहासिक नक्शों, उपग्रह चित्रों और लगभग 3,000 वनस्पति प्रजातियों के डेटासेट का उपयोग किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि पर्वत की निचली ढलानों पर प्रति वर्ग किलोमीटर 75% तक प्राकृतिक पौधों की प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं, और इसका प्रमुख कारण शहरीकरण और कृषि विस्तार है।
जनसंख्या वृद्धि और भूमि क्षरण
1913 में जहाँ इस क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व मात्र 30 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था, वहीं यह आंकड़ा 2022 तक बढ़कर 430 हो गया। इस तेज़ जनसंख्या वृद्धि ने जंगलों की कटाई, भूमि की साफ-सफाई और प्राकृतिक आवासों को खत्म कर दिया, जिससे जैव विविधता पर सीधा प्रभाव पड़ा। शोधकर्ताओं ने स्पष्ट रूप से बताया कि जलवायु परिवर्तन नहीं, बल्कि भूमि उपयोग में बदलाव और जनसंख्या का दबाव इस संकट के लिए ज़िम्मेदार हैं।
संरक्षण की संभावनाएँ और समाधान
इस अध्ययन में एक सकारात्मक पहलू यह भी सामने आया कि पारंपरिक एग्रोफॉरेस्ट्री प्रणाली (कृषि और वानिकी का मिश्रण) और संरक्षित क्षेत्र जैव विविधता संरक्षण के लिए कारगर हो सकते हैं। इसका मतलब यह है कि यदि नीति निर्माताओं और स्थानीय समुदायों द्वारा संतुलित और पारंपरिक भूमि उपयोग को प्रोत्साहित किया जाए, तो जैव विविधता को पुनः संरक्षित किया जा सकता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- किलिमंजारो पर्वत तंज़ानिया में स्थित एक सुप्त ज्वालामुखी है।
- इसकी ऊँचाई लगभग 5,895 मीटर (19,341 फीट) है।
- इस क्षेत्र की जलवायु, वनस्पति और जीव-जंतु अफ्रीका के सबसे विविध पारिस्थितिकी तंत्र में से एक हैं।
- भारत में 2001 से 2023 तक 15 लाख हेक्टेयर से अधिक वृक्ष आच्छादन समाप्त हो चुका है।
भारत जैसे देश, जहाँ शहरीकरण, वनों की कटाई और भूमि क्षरण प्रमुख पर्यावरणीय चिंताएँ हैं, किलिमंजारो पर किया गया यह शोध एक चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए। यह स्पष्ट करता है कि यदि समय रहते भूमि उपयोग की नीतियों में बदलाव नहीं किए गए, तो भारत की पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर क्षेत्र और अन्य जैव विविधता से भरपूर स्थल भी इसी संकट की चपेट में आ सकते हैं।