काज़ीरंगा-कार्बी आंगलोंग परिदृश्य में विलुप्त माने जाने वाले धोल की वापसी

भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में विलुप्त माने जा रहे एशियाई जंगली कुत्ते यानी धोल (Cuon alpinus) की असम के काज़ीरंगा-कार्बी आंगलोंग परिदृश्य (KKAL) में वापसी हुई है। वन्यजीव संस्थान (WII) के वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस शोध की पुष्टि ‘जर्नल ऑफ थ्रेटेंड टैक्सा’ में प्रकाशित हालिया अध्ययन में हुई है, जिसमें अमगुरी कॉरिडोर में धोल की पहली बार कैमरा ट्रैप से ली गई तस्वीरें दर्ज की गई हैं।

जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण खोज

शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खोज भारत के कम प्रसिद्ध लेकिन पारिस्थितिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मांसाहारी प्रजातियों के संरक्षण के लिए एक नई उम्मीद जगाती है। धोल जैसे सामाजिक शिकारी को बड़े, अविच्छिन्न वन क्षेत्रों की आवश्यकता होती है, और इसकी उपस्थिति इस पारिस्थितिक गलियारे की अहमियत को रेखांकित करती है।
अध्ययन के प्रमुख बिंदु:

  • अध्ययन 2022 में KKAL के चार प्रमुख वन्यजीव गलियारों — पनबाड़ी, हल्दीबाड़ी, कंचनजुरी और अमगुरी — में किया गया।
  • कैमरा ट्रैप द्वारा धोल की छह बार तस्वीरें ली गईं, सभी एक ही व्यक्ति की थीं, जो NH-37 से 375 मीटर और निकटतम मानव बस्ती से लगभग 270 मीटर की दूरी पर थीं।
  • KKAL क्षेत्र 25,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और इंडो-बर्मा जैव विविधता हॉटस्पॉट का हिस्सा है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • धोल का वैज्ञानिक नाम: Cuon alpinus
  • IUCN स्थिति: संकटग्रस्त (Endangered)
  • आखिरी पुष्टि की गई पूर्वोत्तर उपस्थिति: नागालैंड, 2011
  • KKAL क्षेत्रफल: लगभग 25,000 वर्ग किमी, असम, मेघालय और नागालैंड में फैला हुआ
  • KKAL में प्रमुख जीव: एक-सींग वाला गैंडा, बंगाल टाइगर, एशियाई हाथी, तेंदुआ, स्लॉथ बियर, 500+ पक्षी प्रजातियाँ

धोल: पारिस्थितिक भूमिका और संकट

धोल गहरे लाल रंग के फर और काले सिरे वाली झाड़ीदार पूंछ के लिए जाना जाता है। यह प्रजाति समन्वित शिकार रणनीति में माहिर है और पारिस्थितिक तंत्र में शिकार संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। यह मुख्य रूप से भारत, नेपाल, भूटान, म्यांमार, चीन, थाईलैंड, मलेशिया आदि क्षेत्रों में पाया जाता है, लेकिन इसके ऐतिहासिक वितरण क्षेत्र का केवल एक-चौथाई हिस्सा ही अब बचा है।
धोल को मुख्य रूप से तीन खतरों का सामना करना पड़ता है:

  • आवास विनाश और खंडित पारिस्थितिक तंत्र
  • शिकार की प्रजातियों की कमी
  • इंसानों द्वारा प्रतिशोधात्मक हत्या

निष्कर्ष

धोल की वापसी केवल एक विलुप्त प्रजाति का पुनरागमन नहीं है, बल्कि यह भारत के जैविक गलियारों की पारिस्थितिक गुणवत्ता का प्रमाण है। काज़ीरंगा-कार्बी आंगलोंग जैसे परिदृश्य न केवल बाघों और हाथियों जैसे प्रमुख जीवों के लिए, बल्कि कम चर्चित प्रजातियों के लिए भी जीवनरेखा हैं। इस खोज से भारत में संरक्षण की रणनीति को नई दिशा मिल सकती है और यह वन्यजीव विज्ञान के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है।

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