काकोरी कांड: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का साहसिक अध्याय

आज से सौ वर्ष पूर्व, 9 अगस्त 1925 को उत्तर प्रदेश के काकोरी रेलवे स्टेशन के पास स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक साहसिक घटना घटित हुई, जिसे काकोरी कांड या काकोरी ट्रेन एक्शन के नाम से जाना जाता है। इस घटना ने न केवल ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया, बल्कि भारतीय जनता के मन में क्रांतिकारी आंदोलन के प्रति नया जोश भर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने आज इन अमर क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके बलिदान और देशभक्ति की सराहना की।
घटना की पृष्ठभूमि
काकोरी कांड का संचालन हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के सदस्यों ने किया था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश उपनिवेशवाद को सशस्त्र क्रांति के माध्यम से समाप्त करना था। योजना के तहत, ब्रिटिश प्रशासन द्वारा भारतीयों से वसूले गए करों की राशि, जिसे सरकारी खजाने में जमा करने के लिए ले जाया जा रहा था, को हथियार खरीदने के लिए उपयोग करना था।इस अभियान का नेतृत्व राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्ला खान ने किया, जिनके साथ चंद्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह और अन्य क्रांतिकारी भी शामिल थे।
कांड की मुख्य घटनाएं
- 8 अगस्त 1925: HRA की बैठक में ट्रेन लूट की योजना बनी।
- 9 अगस्त 1925: सहारनपुर से लखनऊ जा रही ‘नंबर 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन’ को काकोरी के पास रोका गया और गार्ड के डिब्बे में रखे लगभग 8,000 रुपये लूट लिए गए।
- यात्रियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया, लेकिन गोलीबारी में एक यात्री अहमद अली की मृत्यु हो गई।
- इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने व्यापक पैमाने पर गिरफ्तारी अभियान चलाया।
मुकदमा और सज़ाएं
काकोरी कांड का मुकदमा 21 मई 1926 को शुरू हुआ। ब्रिटिश अदालत में गोविंद बल्लभ पंत, चंद्रभानु गुप्ता जैसे प्रमुख वकीलों ने क्रांतिकारियों का बचाव किया, जबकि राम प्रसाद बिस्मिल ने स्वयं अपना पक्ष रखा।जुलाई 1927 में अंतिम निर्णय सुनाया गया —
- फांसी की सज़ा: राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी।
- सेल्युलर जेल में आजीवन निर्वासन: सचिन्द्र बख्शी, शचिन्द्रनाथ सान्याल।
- अन्य कई क्रांतिकारियों को 4 से 14 वर्षों की सज़ा मिली।17 से 19 दिसंबर 1927 के बीच फांसी की सजाएं दी गईं, बावजूद इसके कि पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- काकोरी कांड का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के प्रतीकात्मक और वित्तीय ढांचे पर सीधा प्रहार करना था।
- हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) को बाद में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) नाम दिया गया।
- काकोरी, लखनऊ से लगभग 16 किमी दूर स्थित है।
- चंद्रशेखर आज़ाद इस घटना में पकड़े नहीं गए और 1931 तक संगठन का नेतृत्व करते रहे।
काकोरी कांड केवल एक ट्रेन डकैती नहीं थी, बल्कि यह एक सशस्त्र विद्रोह का प्रतीक थी, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों की भूमिका को अमर कर दिया। यह घटना आज भी भारतीय युवाओं के लिए साहस, बलिदान और देशभक्ति की प्रेरणा बनी हुई है।
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