कश्मीर में 124 साल बाद ब्राउन ट्राउट की वापसी: खेल, पर्यटन और पारिस्थितिकी के लिए एक ऐतिहासिक पहल

1900 की सर्दियों में जब ब्रिटिशों ने स्कॉटलैंड की मूल निवासी ब्राउन ट्राउट को कश्मीर की नदियों में छोड़ा था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह मछली कश्मीर की जैव विविधता और एंगलिंग पर्यटन का अभिन्न हिस्सा बन जाएगी। अब, एक सदी बाद, कश्मीर की नदियाँ एक बार फिर अपने पुराने मेहमान का स्वागत करने के लिए तैयार हैं।
ट्राउट की वापसी: एक ऐतिहासिक पुनर्जीवन
कश्मीर के मत्स्य पालन विभाग ने घोषणा की है कि अक्टूबर 2025 से ब्राउन ट्राउट को पुनः कश्मीर की ठंडी जलधाराओं में छोड़ा जाएगा। यह ऐसा पहली बार होगा जब ब्रिटिश काल के बाद इस मछली को दोबारा प्राकृतिक जल स्रोतों में गेम फिश के रूप में पेश किया जा रहा है।
- स्थल: वेशव नदी, कौंसरनाग झील (कुलगाम), और अन्य ठंडी धाराएँ
- प्रशिक्षण केंद्र: टीचंसार हैचरी, कुलगाम
- उद्देश्य: खेल मत्स्य पालन (Game Fishing) को पुनर्जीवित करना
ब्राउन ट्राउट: एक अनोखी मछली
- यह ठंडे, ऑक्सीजन युक्त जल में पनपती है
- आकार: 15–22 इंच लंबी, वजन 1–5 पाउंड
- व्यवहार: प्राकृतिक, जंगली वातावरण में ही पनपती है; आक्रामक और शिकार प्रवृत्ति वाली
- कैनिबलिज्म (अपनी ही प्रजाति को खाना) इसका सामान्य व्यवहार है — इसीलिए प्रजनन काल (अक्टूबर–नवंबर) को चुना गया है जब यह कम आक्रामक होती है
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- ब्राउन ट्राउट की पहली सफल खेप 1900 में इंग्लैंड से आई, जब फ्रैंक जे. मिचेल ने पानज़गाम स्ट्रीम (दाचिगाम) में इसे छोड़ा
- पहली खेप (1899) में 10,000 अंडे मर गए थे, लेकिन दूसरी खेप में 1,800 छोटे ट्राउट (फ्राई) थे
- कश्मीर के 360 ‘बीट्स’ को मत्स्य क्रियाकलापों के लिए चिन्हित किया गया था
- यह परियोजना PM Matsya Sampada Yojana (PMMSY) और J&K’s Holistic Agricultural Development Programme के अंतर्गत हो रही है
- डेनमार्क से आयातित “शुद्ध” ब्राउन ट्राउट के तीन लाख अंडों को कुलगाम में तैयार किया गया