कम मुद्रास्फीति: उपभोक्ताओं के लिए राहत, लेकिन सरकार के बजट गणित के लिए चुनौती

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा जारी दो प्रमुख मुद्रास्फीति आंकड़ों ने भारतीय उपभोक्ताओं को राहत दी है। अगस्त 2025 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति मात्र 2.07% रही, जबकि थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित मुद्रास्फीति सिर्फ 0.52% रही। हालांकि यह आंकड़े आम परिवारों के लिए खुशखबरी हैं, लेकिन सरकार के लिए ये संकेत राजकोषीय गणना में समस्याएं पैदा कर सकते हैं।

मुद्रास्फीति और नाममात्र GDP का संबंध

मुद्रास्फीति का सीधा असर सरकार के बजटीय अनुमानों पर पड़ता है — विशेष रूप से नाममात्र (Nominal) सकल घरेलू उत्पाद (GDP) पर, जो किसी देश में एक वित्तीय वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य होता है, बिना मुद्रास्फीति को घटाए।
वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट में सरकार ने 10.1% नाममात्र GDP वृद्धि दर का अनुमान लगाया था, जिससे कुल GDP ₹357 लाख करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद थी। परंतु अप्रैल-जून तिमाही में वास्तविक GDP वृद्धि भले ही 7.8% रही हो, नाममात्र GDP वृद्धि सिर्फ 8.8% रही — जो सरकार की अपेक्षा से कम है।

कर संग्रह और बजटीय प्रभाव

कम मुद्रास्फीति का प्रभाव सरकार के कर संग्रह पर भी पड़ा है। अप्रैल-जुलाई 2025 में:

  • सकल कर राजस्व में सिर्फ 1% की वृद्धि दर्ज की गई।
  • शुद्ध कर राजस्व में 7.5% की गिरावट आई।

बजट में अनुमान लगाया गया था कि शुद्ध कर राजस्व लगभग 11% बढ़ेगा, लेकिन कम कीमतों के कारण उत्पादन भले ही बढ़े, मूल्य में वृद्धि कम होने से सरकार की कर आय प्रभावित हो रही है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • CPI और WPI दो प्रमुख मुद्रास्फीति मापक हैं — CPI उपभोक्ता आधारित और WPI थोक बाजार आधारित होता है।
  • सरकार के राजकोषीय घाटे और ऋण-से-GDP अनुपात की गणना नाममात्र GDP के आधार पर होती है।
  • 13 में से 9 वर्षों में सरकार का नाममात्र GDP अनुमान वास्तविक वृद्धि से अधिक रहा है।
  • वित्त वर्ष 2025-26 के लिए राजकोषीय घाटा लक्ष्य 4.4% और ऋण-से-GDP अनुपात 56.1% निर्धारित किया गया है।

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