कपास पर आयात शुल्क हटाने का असर: किसानों की नाराज़गी बनाम वस्त्र उद्योग की राहत

हाल ही में भारत सरकार द्वारा कपास पर 11% आयात शुल्क हटाने के फैसले ने देशभर के किसानों में असंतोष पैदा कर दिया है। दूसरी ओर, वस्त्र उद्योग ने इस कदम का स्वागत किया है। यह विरोध और समर्थन न केवल जियोपॉलिटिक्स और व्यापार नीति, बल्कि भारत की कपास व्यापार की संरचना, अनुसंधान में पिछड़ापन, और देशज आपूर्ति श्रृंखला की कमजोर कड़ियों को भी उजागर करता है।
कपास व्यापार में भारत की यात्रा
- 1947 के बाद भारत ने कपास उत्पादन बढ़ाने पर ज़ोर दिया क्योंकि विभाजन के दौरान कई बड़े कपास उत्पादक क्षेत्र पाकिस्तान में चले गए थे।
- इंटेंसिव कॉटन प्रोडक्शन प्रोग्राम, 1970 के दशक में हाइब्रिड वैरायटीज़, और फिर 1999-2014 तक टेक्नोलॉजी मिशन ऑन कॉटन से उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में सुधार हुआ।
- 2002 में Bt कपास (Bollgard II) को दक्षिण और पश्चिम भारत में स्वीकृति मिली, और 2006 में उत्तर भारत में।
2004-05 के बाद से कपास निर्यात में तेज़ वृद्धि हुई और भारत वैश्विक कपास निर्यातक बनकर उभरा। गुजरात जैसे राज्यों में मूंगफली मिलें कपास जिनिंग और कपास बीज तेल उत्पादन में बदल गईं।
मूल्य असंतुलन की समस्या
हाल के वर्षों में भारत में कच्चे कपास का आयात बढ़ता गया है, जो दर्शाता है कि घरेलू उत्पादन या कीमतों में असंतुलन है। 2024-25 में 5.25 लाख टन कपास का आयात, पिछले वर्ष से 77% अधिक रहा — वह भी आयात शुल्क होने के बावजूद।
- घरेलू कपास की कीमतें अधिक, जबकि वैश्विक कीमतें गिर रही हैं, जिससे भारतीय उत्पाद प्रतिस्पर्धी नहीं रह गए हैं।
- 2025 में, Cotton Corporation of India (CCI) ने कुल उत्पादन का 34% खरीदा, जो दर्शाता है कि मंडियों में कीमतें MSP से नीचे चल रही थीं।
- उत्पादन घटा है, लागत बढ़ी है, और Cotton-to-lint ratio भी कमजोर है।
खेती से औद्योगिक कड़ी में समस्याएँ
- 2024-25 में कपास की बुवाई 8.7% घटी, क्योंकि कई किसान धान, सोयाबीन और मूंगफली की ओर शिफ्ट हुए।
- उत्पादन के मामले में भारत का औसत 437 किलो प्रति हेक्टेयर है, जबकि विश्व औसत 833 किलो/हेक्टेयर है, और ब्राज़ील और चीन इससे कहीं आगे हैं।
- Bt हाइब्रिड्स 95% क्षेत्र में हैं, लेकिन ये अब पुरानी तकनीक बन चुकी है और कीट-प्रतिरोध कम हो गया है।
अनुसंधान और नवाचार में पिछड़ापन
- जहां दुनिया Bollgard-III, CRISPR आधारित जीन एडिटिंग जैसी तकनीकों को अपनाकर आगे बढ़ रही है, वहीं भारत की कपास तकनीक बीस साल पुरानी है।
- ब्राज़ील और ऑस्ट्रेलिया ने उच्च तकनीकी बीज अपनाए हैं, और चीन CRISPR आधारित कपास का उपयोग कर रहा है।
- भारत में सार्वजनिक अनुसंधान में निवेश बहुत कम है और इससे खेती की उत्पादकता और टिकाऊपन पर असर पड़ा है।
समाधान: भविष्य की दिशा क्या हो?
- किसानों की आय बढ़ाने के लिए मूल्य समानता (Price Parity) बहाल करनी होगी।
- इसका अर्थ केवल पुराने दौर में लौटना नहीं, बल्कि रिसर्च, तकनीक और उत्पादन की गुणवत्ता को सुधारना है।
- किसान से फैक्ट्री तक (Farm-to-Firm) की मजबूत कड़ी बनानी होगी — जिससे किसान, जिनर, मिल और ब्रांड सभी लाभान्वित हों।
- सरकारी निवेश को बीज तकनीक, जलवायु-अनुकूल किस्मों, और प्रसंस्करण उद्योग के आधुनिकीकरण में लगाना होगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- Bt कपास (Bollgard-II) को भारत में 2002 में पहली बार मंजूरी दी गई थी।
- भारत का औसत कपास उत्पादन 437 किग्रा/हेक्टेयर है, जबकि चीन में 2,257 किग्रा/हेक्टेयर तक है।
- 2024-25 में कपास के आयात में 77% वृद्धि हुई, जो मूल्य असंतुलन की गंभीरता दर्शाती है।
- Cotton Corporation of India MSP से कम कीमतों पर कपास खरीदती है और आपूर्ति- मांग में संतुलन बनाए रखने का संकेत देती है।