कच्चतीवु और पाल्क जलडमरूमध्य विवाद: भारत-श्रीलंका संबंधों में सहयोग की नई राह

भारत ने दशकों से पंचशील सिद्धांत, गुटनिरपेक्ष आंदोलन, सार्क और “पड़ोसी प्रथम नीति” के माध्यम से दक्षिण एशिया में शांति, समावेश और पारस्परिक निर्भरता को बढ़ावा दिया है। लेकिन श्रीलंका के साथ मत्स्य संकट और कच्चतीवु द्वीप की संप्रभुता जैसे अनसुलझे मुद्दे इस दिशा में चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं। अप्रैल 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोलंबो यात्रा के दौरान इन मसलों पर दोनों सरकारों ने मिलकर विचार किया और “मानवीय दृष्टिकोण” की जरूरत पर बल दिया।

आजीविका और पारिस्थितिकी के बीच संघर्ष

तमिलनाडु और श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के मछुआरे सदियों से पाल्क जलडमरूमध्य में मछली पकड़ते आ रहे हैं। लेकिन आधुनिक यंत्रचालित बॉटम ट्रॉलिंग के कारण विवाद गहराता जा रहा है। 2017 में श्रीलंका ने इस विधि पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन तमिलनाडु के सैकड़ों ट्रॉलर्स अब भी इसका प्रयोग करते हैं, जिससे प्रवाल भित्तियां और मछली आवास नष्ट हो रहे हैं।
विडंबना यह है कि पारंपरिक और सतत मछली पकड़ने वाले छोटे मछुआरे, जो पर्यावरण के अनुकूल तरीके अपनाते हैं, वे भी इन व्यावसायिक ट्रॉलरों के कारण प्रभावित हो रहे हैं। यह संघर्ष अब केवल सीमाई नहीं, बल्कि तमिल समुदाय के भीतर भी बन गया है — लाभ आधारित ट्रॉलर संचालकों और जीवन निर्वाह हेतु मछली पकड़ने वालों के बीच।

सतत समाधान की ओर

इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब भारत और श्रीलंका पारंपरिक मछुआरों और ट्रॉलर संचालकों के बीच स्पष्ट भेद करें। श्रीलंकाई मछुआरा संगठनों की सहमति से, तमिलनाडु के छोटे मछुआरों को सीमित दिनों या ऋतुओं में नियंत्रित मछली पकड़ने की अनुमति दी जा सकती है। इसके साथ ही, सामुदायिक जागरूकता और मीडिया संवाद के माध्यम से श्रीलंका के तमिल मछुआरों की युद्धकालीन कठिनाइयों को भी सामने लाना आवश्यक है।

कच्चतीवु: भ्रम बनाम सच्चाई

जन विमर्श में कच्चतीवु द्वीप को मत्स्य विवाद की जड़ माना जाता है, जो कि भ्रामक है। यह द्वीप मात्र 0.5 वर्ग मील क्षेत्रफल का है और निर्जन है, सिवाय सेंट एंथनी चर्च के, जहां तमिल मछुआरे अब भी वार्षिक उत्सव में भाग लेते हैं।
1974 की भारत-श्रीलंका समुद्री सीमा संधि के तहत यह द्वीप श्रीलंका को सौंपा गया था। यह संधि अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार वैध और बाध्यकारी है। “इंदिरा गांधी ने द्वीप सौंप दिया” जैसी बातें राजनीति से प्रेरित मिथक हैं। ऐतिहासिक रूप से यह द्वीप श्रीलंका के प्रशासनिक नियंत्रण में था — पुर्तगाली, डच और जाफना के तमिल राजाओं के शासनकाल से ही।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • पाल्क जलडमरूमध्य को भारत और श्रीलंका दोनों “ऐतिहासिक जलक्षेत्र” मानते हैं।
  • श्रीलंका ने 2017 में बॉटम ट्रॉलिंग पर प्रतिबंध लगाया था।
  • 1974 की समुद्री सीमा संधि के तहत कच्चतीवु को श्रीलंका को सौंपा गया था, जो अंतरराष्ट्रीय संधियों की दृष्टि से वैध है।
  • UNCLOS (अनुच्छेद 123) अर्ध-बंध समुद्रों में सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • FAO के 1995 के फिशरीज कोड के अनुसार बॉटम ट्रॉलिंग अवैध मानी जाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *