ओडिशा सरकार का बड़ा कदम: पारंपरिक बीज किस्मों के संरक्षण के लिए नई SOP जारी

भारत में घटती कृषि-जैव विविधता और छोटे किसानों के सशक्तिकरण को ध्यान में रखते हुए ओडिशा सरकार ने पारंपरिक बीज किस्मों (लैंडरेस) की पहचान, संरक्षण और मुख्यधारा में लाने के लिए एक व्यापक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) अधिसूचित की है। यह पहल ‘श्री अन्न अभियान’ (Shree Anna Abhiyan) के अंतर्गत की गई है, जिसका उद्देश्य किसानों की पारंपरिक जानकारी और सामुदायिक बीज प्रणालियों को प्राथमिकता देना है।

लैंडरेस: कृषि परंपरा और जैविक विविधता का धरोहर

लैंडरेस वे पारंपरिक बीज किस्में हैं, जो स्थानीय वातावरण के अनुसार पीढ़ी दर पीढ़ी किसानों द्वारा प्राकृतिक और मानव चयन के मिश्रण से विकसित हुई हैं। ये बीज जलवायु सहनशीलता, पोषण, कीट प्रतिरोध और कम इनपुट में स्थिर उत्पादन जैसे गुणों के लिए जाने जाते हैं। हरित क्रांति और उच्च उत्पादक किस्मों (HYV) के प्रसार के चलते भारत में इन पारंपरिक किस्मों का काफी नुकसान हुआ है।

SOP के प्रमुख घटक

नई SOP का उद्देश्य औपचारिक बीज प्रणाली और सामुदायिक बीज प्रणालियों के बीच की खाई को पाटना है। इसके तहत निम्नलिखित प्रमुख कदम उठाए जाएंगे:

  • कृषि जैव विविधता क्षेत्रों का सर्वेक्षण: जलवायु सहनशीलता, पोषण, कीट प्रतिरोध, और स्थानीय अनुकूलता जैसे गुणों के आधार पर लैंडरेस की पहचान की जाएगी। इसमें किसानों की पारंपरिक जानकारी को वैज्ञानिक आकलन के साथ दस्तावेजित किया जाएगा।
  • फसल विविधता ब्लॉक (CDB) और सामुदायिक बीज केंद्र (CSC): उप-जिला स्तर पर CDB स्थापित किए जाएंगे जो संरक्षण, शुद्धिकरण और बीज गुणन का कार्य करेंगे। CSCs, महिला स्वयं सहायता समूहों, किसान संगठनों और FPOs द्वारा संचालित होंगे और PPVFRA के अंतर्गत कानूनी सुरक्षा की प्रक्रिया को बढ़ावा देंगे।
  • डिजिटल लैंडरेस रजिस्ट्री: राज्य-स्तरीय रजिस्ट्री में सभी लैंडरेस की जानकारी, जैविक और पारंपरिक गुणों के साथ दर्ज की जाएगी।
  • सहभागी किस्म चयन प्रक्रिया: तीन विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में दो वर्षों तक मल्टी-लोकेशन ट्रायल और कम से कम 10 किसानों द्वारा खेत स्तर पर प्रदर्शन किया जाएगा। इसमें किसानों की राय, स्थायित्व, पोषण और सांस्कृतिक विशेषताएँ प्रमुख मानदंड होंगी।
  • फील्ड और बीज मानकों की अंतिम रूपरेखा: राज्य सरकार द्वारा गठित ‘लैंडरेस वैरायटल रिलीज कमेटी’ (LVRC) इन किस्मों के लिए विशिष्ट मानक तय करेगी। इन मानकों को PPVFRA, ICAR, ओडिशा कृषि विश्वविद्यालय, और समुदाय प्रतिनिधियों की सलाह से अंतिम रूप दिया जाएगा।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • लैंडरेस कृषि जैव विविधता के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • भारत की लगभग 40-60% बीज आवश्यकताएं अभी भी किसानों द्वारा बचाए गए बीजों से पूरी होती हैं।
  • ओडिशा के कोरापुट क्षेत्र को FAO द्वारा “Globally Important Agricultural Heritage System (GIAHS)” के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • Protection of Plant Varieties and Farmers’ Rights Act (PPVFRA), 2001 किसानों को उनके पारंपरिक बीजों पर अधिकार देता है।

समुदाय को अधिकार और पहचान

SOP यह सुनिश्चित करती है कि संकलित सभी लैंडरेस संबंधित समुदाय या ‘कस्टोडियन किसान’ के नाम पर पंजीकृत हों। साथ ही, बीजों का पारंपरिक नाम और क्षेत्रीय पहचान भी आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा, जिससे किसानों की भूमिका को औपचारिक मान्यता मिले।

निष्कर्ष

ओडिशा द्वारा घोषित यह SOP पारंपरिक कृषि ज्ञान, जैव विविधता और खाद्य सुरक्षा के संगम पर आधारित है। यह न केवल बीज प्रणाली में विविधता को पुनर्जीवित करने का प्रयास है, बल्कि यह छोटे किसानों को अधिकार, पहचान और भविष्य की दिशा में एक स्थायी रास्ता भी प्रदान करता है। यह मॉडल अन्य राज्यों के लिए भी अनुकरणीय हो सकता है।

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