एएमसीए और इंजन संकट: भारत की आत्मनिर्भर रक्षा उड़ान की सबसे बड़ी चुनौती

भारत में उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (AMCA) को स्वदेशी तकनीक से विकसित करने की प्रक्रिया तेज़ी से आगे बढ़ रही है। इस पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ लड़ाकू विमान को आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि माना जा रहा है। लेकिन इस महत्वाकांक्षी परियोजना के केंद्र में सबसे बड़ी बाधा है — विश्वसनीय स्वदेशी इंजन का अभाव। भारत की रक्षा क्षमता की कहानी यही दर्शाती है कि विमान की सफलता का मूल उसकी ‘प्रणोदन शक्ति’ यानी इंजन होता है।
एचएफ-24 मरुत: पहले प्रयास की सीख
1950 के दशक में विकसित भारत का पहला स्वदेशी लड़ाकू विमान ‘HF-24 मरुत’ अपने युग का क्रांतिकारी प्रयास था। लेकिन ब्रिटिश ओरफियस 703 इंजन की कमज़ोर शक्ति के कारण इसकी संभावनाएं अधूरी रह गईं। HAL ने केवल 147 मरुत विमानों का निर्माण किया, और इसे 1990 तक सेवा से हटा दिया गया। यह अनुभव आज भी भारत के लिए सबक है कि उच्च प्रदर्शन वाले विमानों के लिए शक्तिशाली इंजन अनिवार्य हैं।
कावेरी इंजन की विफलता और विदेशी निर्भरता
HF-24 के बाद, 1989 में DRDO की GTRE प्रयोगशाला ने कावेरी इंजन पर कार्य शुरू किया। 35 वर्षों में ₹2000 करोड़ से अधिक खर्च करने के बावजूद, कावेरी इंजन एलसीए तेजस की आवश्यकताओं पर खरा नहीं उतर सका। मजबूरी में, अमेरिका से आयातित GE F404 इंजन को तेजस Mk1 में इस्तेमाल किया गया, जिससे इसके प्रदर्शन की सीमाएं तय हो गईं। तेजस Mk1A के लिए 99 इंजनों की डिलीवरी में हुई देरी ने HAL और GE दोनों को कठघरे में ला खड़ा किया।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- HF-24 मरुत भारत का पहला स्वदेशी लड़ाकू विमान था।
- GTRE द्वारा विकसित कावेरी इंजन आज तक ऑपरेशनल उपयोग में नहीं आ सका।
- GE F404 और F414 अमेरिका से आयातित इंजन हैं, जो वर्तमान और प्रस्तावित भारतीय विमानों में प्रयोग हो रहे हैं।
- भारतीय थल सेना के अर्जुन टैंक और नौसेना के अधिकांश पोत भी विदेशी इंजन पर निर्भर हैं।
तीनों सेनाओं में विदेशी इंजन पर निर्भरता
यह संकट केवल वायुसेना तक सीमित नहीं है। थल सेना का अर्जुन टैंक जर्मन डीज़ल इंजन पर चलता है और नौसेना के सभी युद्धपोत — चाहे वे स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किए गए हों — रूसी, फ्रांसीसी, जर्मन या अमेरिकी इंजन पर निर्भर हैं। भारत का कोई भी प्रमुख सैन्य प्लेटफ़ॉर्म पूरी तरह स्वदेशी प्रणोदन से संचालित नहीं होता।
स्वदेशी इंजन तकनीक की रणनीतिक आवश्यकता
इंजन केवल तकनीकी उपकरण नहीं हैं; वे रणनीतिक स्वायत्तता का मूल आधार हैं। जब तक भारत अपने लड़ाकू विमानों, टैंकों और नौसेना पोतों के लिए विश्वसनीय इंजन नहीं बना सकता, तब तक आत्मनिर्भरता एक अधूरी कल्पना रहेगी। निर्यात भी बाधित होता है क्योंकि तीसरे देश से स्वीकृति लेनी पड़ती है। GE-F414 जैसे इंजन के लिए पूर्ण तकनीक हस्तांतरण की बातचीत भी रुकी हुई है, जिससे भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।
निष्कर्ष
भारत के लिए आवश्यक है कि वह इंजन निर्माण को केवल तकनीकी परियोजना न समझे, बल्कि इसे रणनीतिक निवेश और रक्षा आत्मनिर्भरता के रूप में अपनाए। इसके लिए दीर्घकालिक राजनीतिक संकल्प, ठोस वित्तीय योजना और निजी क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थानों तथा रक्षा अनुसंधान संगठनों का समन्वित प्रयास जरूरी है। जब तक भारत अपनी रक्षा प्रणालियों की ‘धड़कन’ — इंजन — को स्वयं नहीं बना सकता, तब तक कोई भी उन्नत लड़ाकू विमान पूरी तरह भारतीय नहीं कहा जा सकता।