उत्तर वैदिक कालीन वेद: ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद

उत्तर वैदिक कालीन वेद: ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद

सामवेद
सामवेद में 1,875 ऋचाएं हैं, इसमें 75 सूक्तों को छोड़कर शेष ऋग्वेद से लिए गए हैं। यह भारतीय संगीतशास्त्र की सबसे पुरानी पुस्तक है। सामवेद का गायन करने वाले व्यक्ति को उद्गाता कहा जाता था। सामवेद की तीन शाखाएं कौन्थुम, जैमिनीय और रामायणीय हैं। सामवेद का प्रथम द्रष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनी को माना जाता है।
यजुर्वेद
यजुर्वेद गद्य तथा पद्य दोनों शैलियों में लिखा गया है, इसमें यज्ञ की विभिन्न विधियों के बारे में बताया गया है। यजुर्वेद में 40 मंडल तथा लगभग 2000 मन्त्र हैं। यजुर्वेद के दो भाग हैं – कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद।वाजसनेयी संहिता, तैत्तरीय, मैत्रायणि और काठक संहिता का सम्बन्ध कृष्ण यजुर्वेद से है। यजुर्वेद का अध्ययन करने वाले को अध्वर्यु कहा जाता है। कृष्ण यजुर्वेद की रचना गद्य शैली में जबकि शुक्ल यजुर्वेद की रचना पद्य शैली में की गयी है।
यजुर्वेद में कृषि और सिंचाई की विधियों का उल्लेख किया गया है। यजुर्वेद में चावल की विभिन्न किस्मों का उल्लेख किया गया है। इसमें राजसूय, वाजपेय और अश्वमेध यज्ञ व रत्निनों का वर्णन किया गया है।
अथर्ववेद
अथर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की थी, इसमें तंत्र मन्त्र इत्यादि का विवरण दिया गया है। यजुर्वेद से प्राचीन भारतीय औषधि और विज्ञान के सम्बन्ध में उपयोगी जानकारी मिलती है। यजुर्वेद में रोग के निवारण के लिए तंत्र मन्त्र के उपयोग का वर्णन किया गया है। अथर्ववेद की दो शाखाएं शौनक और पिप्पलाड हैं। इसे ब्रह्मावेड, भैषज्य्वेद तथा महीवेद भी कहा जाता है। अथर्ववेद से भारतीय वस्तुकला की जानकारी मिलती है, इसमें वास्तुशास्त्र का विवरण दिया गया है।
अथर्ववेद का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा आयुर्विज्ञान से सम्बंधित है। भूमि सूक्त में सर्वप्रथम राष्ट्रवाद का उल्लेख मिलता है।

Originally written on January 22, 2021 and last modified on January 22, 2021.

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