ईरान-इज़राइल तनाव से तेल कीमतों में उछाल: भारत और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

पश्चिम एशिया में ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ते तनाव ने वैश्विक तेल बाजार में भारी उथल-पुथल मचा दी है। ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतें एक सप्ताह में लगभग 9% तक बढ़कर 75.65 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गईं, जो लगभग पांच महीने का उच्चतम स्तर है। हालाँकि सोमवार को कुछ नरमी देखने को मिली जब खबर आई कि ईरान ने कतर, सऊदी अरब और ओमान के माध्यम से अमेरिका से संघर्षविराम के प्रयासों में मदद मांगी है।
तेल कीमतों में वृद्धि का कारण
इस पूरे परिप्रेक्ष्य का मुख्य कारण ईरान द्वारा बार-बार होरमुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी है। यह जलडमरूमध्य फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है, और इसे वैश्विक तेल आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण चोकपॉइंट माना जाता है। इसकी अस्थायी बंदी भी तेल आपूर्ति में बाधा, शिपिंग और बीमा लागत में वृद्धि तथा वैश्विक ऊर्जा कीमतों में उछाल का कारण बन सकती है।
ईआईए (U.S. Energy Information Administration) के अनुसार, 2024 में इस जलडमरूमध्य के माध्यम से प्रतिदिन औसतन 2 करोड़ बैरल तेल का परिवहन हुआ, जो वैश्विक पेट्रोलियम खपत का लगभग पांचवां हिस्सा है। 84% तेल और 83% प्राकृतिक गैस की आपूर्ति एशियाई देशों—विशेषकर चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया—की ओर जाती है।
वैश्विक प्रतिक्रिया और संभावनाएँ
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने जून 2025 की रिपोर्ट में कहा है कि तेल बाजार फिलहाल “अच्छी तरह से आपूर्ति” की स्थिति में है, जब तक कि कोई बड़ा व्यवधान न हो। अनुमान है कि 2025 में तेल की मांग 7.2 लाख बैरल प्रतिदिन बढ़ेगी, जबकि आपूर्ति 18 लाख बैरल प्रतिदिन तक बढ़ सकती है। इसके बावजूद IEA ने चेताया है कि हालिया घटनाक्रम यह दिखाते हैं कि भू-राजनीतिक जोखिम अब भी तेल आपूर्ति की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं।
भारत पर संभावित प्रभाव
भारत, जो अपनी कच्चे तेल की आवश्यकताओं का 80% से अधिक आयात करता है, इस वैश्विक अस्थिरता से अप्रभावित नहीं रह सकता। हालांकि भारत ईरान से सीधे बहुत कम तेल आयात करता है, लेकिन वैश्विक कीमतों में वृद्धि से उसके आयात बिल में वृद्धि निश्चित है। रेटिंग एजेंसी ICRA की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर के अनुसार, यदि कीमतें लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बनी रहती हैं, तो यह भारतीय उद्योगों की लाभप्रदता और निजी निवेश योजनाओं को प्रभावित कर सकता है, जिससे GDP में गिरावट की संभावना बन सकती है।
अन्य विशेषज्ञों का भी मानना है कि अगर ईरान ने वास्तव में होरमुज जलडमरूमध्य को बाधित किया, तो यह वैश्विक व्यापार और मुद्रास्फीति के लिए गंभीर परिणाम ला सकता है। हालाँकि, यह परिदृश्य “अत्यंत असंभव” माना जा रहा है क्योंकि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश ऐसे किसी भी प्रयास को रोकने के लिए कड़े कदम उठा सकते हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- होरमुज जलडमरूमध्य से होकर 2024 में वैश्विक तेल आपूर्ति का लगभग 25% गुजरा।
- ब्रेंट क्रूड की कीमतें 13 जून को 78.50 डॉलर/बैरल के उच्चतम स्तर पर पहुंचीं।
- भारत 80% से अधिक कच्चा तेल आयात करता है, लेकिन ईरान से आयात सीमित है।
- IEA के अनुसार, 2025 में वैश्विक तेल आपूर्ति मांग से अधिक रह सकती है।
निष्कर्ष
ईरान-इज़राइल के बीच बढ़ते तनाव और होरमुज जलडमरूमध्य के संबंध में संभावित खतरों ने वैश्विक तेल बाजार की नाजुक स्थिति को उजागर किया है। भारत जैसे देशों के लिए यह समय सतर्कता और रणनीतिक योजना का है, ताकि वैश्विक अस्थिरता के प्रभाव को न्यूनतम किया जा सके। तेल आपूर्ति का विविधीकरण और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ना, दीर्घकालीन समाधान का रास्ता हो सकता है।