इनकम टैक्स बिल 2025: सरल कानून की ओर एक कदम या निजता पर हमला?

संसद के मानसून सत्र में पारित हुआ नया इनकम टैक्स बिल 2025, 1961 के कानून को प्रतिस्थापित करने वाला है। इस नए कानून की सबसे प्रमुख विशेषता इसकी सरलता, स्पष्टता और संक्षिप्तता है, परंतु इसके कुछ प्रावधानों को लेकर गहरी चिंता भी सामने आई है। इस लेख में हम समझते हैं कि यह कानून क्यों लाया गया, इसमें क्या बदलाव हुए हैं, और इसके संभावित प्रभाव क्या हो सकते हैं।
पुराने कानून की सीमाएं और नए बिल की आवश्यकता
इनकम टैक्स एक्ट, 1961 एक जटिल और समय के साथ अत्यधिक संशोधित कानून बन चुका था। इसमें कर अधिकारियों को मिली व्यापक विवेकाधीन शक्तियाँ अक्सर आम करदाताओं के उत्पीड़न का कारण बनती थीं। इसके प्रावधान इतने कठिन थे कि एक सामान्य नागरिक के लिए कर प्रणाली को समझना कठिन था। यही कारण है कि सरकार ने एक नए और सरल कानून की आवश्यकता महसूस की।
नए बिल में अध्यायों की संख्या 47 से घटाकर 23 कर दी गई है, जबकि धाराएं 819 से घटाकर 536 कर दी गई हैं। स्पष्टता के लिए तालिकाओं की संख्या 18 से बढ़ाकर 57 और गणना सूत्रों की संख्या 6 से बढ़ाकर 46 की गई है। इसके अलावा, तकनीकी भाषा को हटाकर इसे अधिक सामान्य हिंदी-अंग्रेज़ी में लिखा गया है।
महत्वपूर्ण सुधार और बदलाव
बिल में अधिकांश बदलाव तकनीकी प्रकृति के हैं, जिनका सीधा असर आम करदाताओं पर नहीं पड़ेगा। परंतु कुछ सकारात्मक पहलू उल्लेखनीय हैं:
- अब करदाता अपनी रिटर्न चार साल तक अपडेट कर सकते हैं, जिससे अनजाने में हुई गलतियों को सुधारा जा सकता है।
- असेसमेंट को पुनः खोलने की अवधि घटाकर पाँच वर्ष कर दी गई है।
खोज एवं जांच से संबंधित विवादास्पद प्रावधान
नए कानून का सबसे विवादास्पद पक्ष आयकर अधिकारियों द्वारा खोज और जब्ती के अधिकारों से जुड़ा है। पुराने कानून में अधिकारी इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ों की जांच के लिए “आवश्यक सुविधा” मांग सकते थे। लेकिन नया कानून करदाता से यह मांग करता है कि वह “तकनीकी और अन्य सहायता” प्रदान करे और आवश्यक होने पर पासवर्ड भी साझा करे।
इसमें चिंताजनक यह है कि कानून स्पष्ट नहीं करता कि यह जानकारी किन सीमाओं तक मांगी जा सकती है। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि यदि अधिकारी चाहें, तो करदाता को अपने सोशल मीडिया या ईमेल पासवर्ड भी देने पड़ सकते हैं। यदि पासवर्ड नहीं दिए गए, तो कानून अब अधिकारी को कंप्यूटर सिस्टम का “एक्सेस कोड ओवरराइड” करने का अधिकार भी देता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की जगह लेने वाला यह पहला नया आयकर कानून है।
- नए कानून में रिटर्न अपडेट करने की सीमा 1 से बढ़ाकर 4 साल कर दी गई है।
- असेसमेंट दोबारा खोलने की अवधि अब अधिकतम 5 वर्ष है।
- संसद की सेलेक्ट कमेटी ने विवादास्पद प्रावधानों को सरकार की दलीलों के आधार पर स्वीकार कर लिया।
हालांकि नया आयकर कानून कई मायनों में स्वागतयोग्य है, परंतु निजता से जुड़े कुछ प्रावधानों ने नागरिक स्वतंत्रता को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। कानून का सरलीकरण और पारदर्शिता प्रशंसनीय हैं, परंतु तकनीकी निगरानी और डाटा एक्सेस के अनियंत्रित अधिकारों को यदि संतुलित न किया गया, तो यह कर सुधार के बजाय नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण बन सकता है। इसलिए, इस कानून की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि इसे लागू करते समय नागरिकों की निजता और पारदर्शिता के बीच संतुलन कैसे कायम रखा जाता है।