इंडियन रोज़वुड संकट में: तमिलनाडु में संरक्षण कानून की समाप्ति से बढ़ा खतरा

भारत में बहुमूल्य और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण वृक्ष इंडियन रोज़वुड (Dalbergia latifolia), जिसे “जंगलों का हाथी दांत” कहा जाता है, अब गंभीर संकट का सामना कर रहा है। ताजा रिपोर्टों के अनुसार, इस प्रजाति का केवल 17.2% उपयुक्त आवास ही संरक्षित क्षेत्रों में स्थित है, जिससे इसका भविष्य असुरक्षित हो गया है। इस स्थिति को और भी चिंताजनक बना दिया है तमिलनाडु सरकार द्वारा ‘रोज़वुड संरक्षण अधिनियम, 1995’ को फरवरी 2025 के बाद आगे न बढ़ाने का निर्णय।
रोज़वुड: पारिस्थितिकी और उद्योग दोनों के लिए अहम
रोज़वुड न केवल फर्नीचर और हस्तशिल्प उद्योग के लिए एक उच्च गुणवत्ता वाला लकड़ी स्रोत है, बल्कि यह पारिस्थितिक दृष्टि से भी एक कीस्टोन प्रजाति मानी जाती है। यह:
- मृदा की उर्वरता बढ़ाती है (नाइट्रोजन स्थिरीकरण द्वारा)
- पक्षियों और कीटों की विविधता का समर्थन करती है
- दीर्घकालिक कार्बन सिंक के रूप में कार्य करती है
संरक्षण अधिनियम की समाप्ति से उत्पन्न खतरे
तमिलनाडु रोज़वुड संरक्षण अधिनियम, 1995 वर्षों तक इस प्रजाति की कटाई को नियंत्रित करता रहा। इसके अंतर्गत निजी भूमि पर भी रोज़वुड काटने के लिए सरकारी अनुमति आवश्यक थी। इसे 2010 में 15 वर्षों के लिए बढ़ाया गया था, परंतु 2025 में इसे बिना नवीनीकरण के समाप्त कर दिया गया। इससे विशेष रूप से नीलगिरी की चाय बागानों में फैले निजी वृक्ष अवैध कटाई के लिए अधिक असुरक्षित हो गए हैं।
क्षेत्रीय अध्ययन और गिरती आबादी
भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) के अंतर्गत आईडब्ल्यूएसटी (IWST) द्वारा 2019 से 2025 के बीच 12 राज्यों में किए गए फील्ड अध्ययन के अनुसार:
- तमिलनाडु में औसतन 0.1 हेक्टेयर क्षेत्र में केवल 2.85 रोज़वुड वृक्ष पाए गए
- कर्नाटक (6.19) और केरल (5.38) की तुलना में यह संख्या बहुत कम है
- अधिकांश वृक्ष वृद्ध हैं और वन्य क्षेत्र में प्राकृतिक पुनरुत्पत्ति लगभग शून्य है
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- ● Dalbergia latifolia को IUCN द्वारा 2018 से ‘Vulnerable’ श्रेणी में रखा गया है
- ● यह प्रजाति CITES के Appendix II में सूचीबद्ध है, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर निगरानी रहती है
- ● भारत में इसे अब भी ‘Near Threatened’ (2011-12) के रूप में वर्गीकृत किया गया है
- ● रोज़वुड का प्रयोग उच्च गुणवत्ता के संगीत वाद्य यंत्रों और लक्ज़री फर्नीचर में होता है
भविष्य की चुनौतियाँ और समाधान
IWST के वैज्ञानिक टी.एन. मनोहरा के अनुसार, जलवायु मॉडल संकेत देते हैं कि भविष्य में रोज़वुड का उपयुक्त आवास और भी सिमटेगा। इसके साथ ही वैश्विक मांग बढ़ने से अवैध कटाई और व्यापार का खतरा बढ़ गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि:
- तमिलनाडु सरकार को कानूनी संरक्षण तत्काल बहाल करना चाहिए
- टैगिंग और सर्टिफिकेशन प्रणाली लागू की जाए जिससे खेती में उगाए गए और वन्य क्षेत्रों से काटे गए लकड़ी में अंतर स्पष्ट हो
संरक्षित क्षेत्रों और उपयुक्त आवास के बीच बहुत कम ओवरलैप होने के कारण, आज अधिकांश रोज़वुड आबादी बिना सुरक्षा के है। यदि अब भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह अनमोल जैविक धरोहर हमसे हमेशा के लिए छिन सकती है।
रोज़वुड केवल एक आर्थिक संसाधन नहीं, बल्कि भारत के वनों की आत्मा है। इसे बचाना हमारी पारिस्थितिकीय, सांस्कृतिक और भविष्य की जिम्मेदारी है।