इंडियन ऑयल द्वारा जैविक विमानन ईंधन उत्पादन की शुरुआत: 2027 तक वैश्विक नियमों के अनुरूप तैयारी

भारत की सबसे बड़ी रिफाइनिंग और ईंधन विपणन कंपनी, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC), इस साल दिसंबर तक अपने पानीपत रिफाइनरी में वाणिज्यिक स्तर पर सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF) का उत्पादन शुरू करने की योजना बना रही है। यह कदम भारत को अंतरराष्ट्रीय विमानन कार्बन उत्सर्जन नियमों (CORSIA) के तहत आगामी 2027 के SAF मिश्रण लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति है।

उपयोग किए गए खाना पकाने के तेल से बनेगा जैव विमानन ईंधन

IOC द्वारा विकसित यह जैव ईंधन मुख्य रूप से उपयोग किए गए खाना पकाने के तेल (Used Cooking Oil) से तैयार किया जाएगा, जिसे बड़े होटल समूह, रेस्तरां और मिठाई-नाश्ता निर्माता जैसे हल्दीराम्स जैसे प्रतिष्ठान एक बार इस्तेमाल करने के बाद फेंक देते हैं। IOC के अध्यक्ष अरविंदर सिंह साहनी के अनुसार, दिसंबर 2025 से पानीपत संयंत्र की उत्पादन क्षमता 35,000 टन प्रतिवर्ष होगी, जो 2027 तक भारत की 1% SAF मिश्रण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।

CORSIA प्रमाणन और वैश्विक मान्यता

IOC को हाल ही में ISCC CORSIA प्रमाणन प्राप्त हुआ है, जो किसी भी कंपनी के लिए SAF के वाणिज्यिक उत्पादन की पूर्व शर्त है। यह प्रमाणन CORSIA (Carbon Offsetting and Reduction Scheme for International Aviation) मानदंडों के अनुरूप है, जो 2027 से अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर अनिवार्य रूप से लागू होगा। यह उपलब्धि अन्य घरेलू रिफाइनरियों और कंपनियों के लिए भी एक मानक स्थापित करती है।

SAF क्या है और क्यों है महत्वपूर्ण?

SAF एक जैव ईंधन है, जिसे सतत स्रोतों से प्राप्त कच्चे माल से तैयार किया जाता है। इसकी रासायनिक संरचना पारंपरिक विमानन ईंधन (ATF) के समान होती है, जिससे यह मौजूदा विमानों के इंजनों के साथ आसानी से उपयोग किया जा सकता है। एयरबस जैसे विमान निर्माता कंपनियाँ पहले ही पुष्टि कर चुकी हैं कि उनके सभी विमान 50% SAF मिश्रण के साथ उड़ान भर सकते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • SAF का उत्पादन भारत में IOC पानीपत रिफाइनरी में शुरू होगा, जिसमें 35,000 टन प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता होगी।
  • ISCC CORSIA प्रमाणन भारत में पहली बार किसी कंपनी को SAF उत्पादन के लिए प्राप्त हुआ है।
  • भारत का राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति (NBCC) 2027 से अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए SAF मिश्रण के लक्ष्य तय कर चुकी है: 2027 में 1% और 2028 में 2%।
  • SAF का वर्तमान लागत पारंपरिक विमानन ईंधन की तुलना में तीन गुना अधिक है।

भविष्य की योजनाएं और चुनौतियाँ

IOC न केवल उपयोग किए गए तेल से SAF बना रही है, बल्कि “अल्कोहल-टू-जेट” तकनीक पर भी काम कर रही है, जिसमें एथनॉल को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाएगा। हालांकि, SAF की उच्च लागत और एयरलाइनों की लागत वृद्धि की आशंका के कारण सरकार घरेलू उड़ानों के लिए मिश्रण अनिवार्यता पर फिलहाल विचार कर रही है।
उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि SAF आने वाले वर्षों में वैश्विक विमानन क्षेत्र के 60% डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को प्राप्त करने में अहम भूमिका निभाएगा। भारत द्वारा समय पर उठाए गए ये कदम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अनुकूलन में मदद करेंगे और घरेलू जैव ईंधन उद्योग को वैश्विक मंच पर स्थापित करेंगे।
यह प्रयास न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर और नवोन्मेषी बनाने की दिशा में भी एक मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है।

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