आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते की समीक्षा में गतिरोध: भारत की बढ़ती चिंताएं

भारत और आसियान (ASEAN) के बीच 2010 में लागू हुआ वस्तु व्यापार समझौता (AITIGA) अब पुनः समीक्षा के दौर से गुजर रहा है, लेकिन प्रक्रिया की प्रगति अत्यंत धीमी बनी हुई है। अब तक नौ दौर की बातचीत के बावजूद कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है, जिससे भारत में चिंता बढ़ गई है, खासकर व्यापार घाटे और चीनी वस्तुओं की अप्रत्यक्ष घुसपैठ को लेकर।

समझौते की असमान शर्तें

AITIGA के तहत भारत ने अपने 71% उत्पादों पर शुल्कों में कटौती की, जबकि:

  • इंडोनेशिया ने केवल 41% उत्पादों पर शुल्क कम किया।
  • वियतनाम ने 66.5% और थाईलैंड ने 67% पर रियायत दी।

इन देशों की प्रति व्यक्ति आय भारत से अधिक होने के बावजूद भारत ने अधिक रियायतें दीं। भारत की चिंता यह भी है कि यह समझौता अब चीनी वस्तुओं के लिए एक “रूटिंग प्वाइंट” बन गया है।

व्यापार घाटा और चीनी प्रभाव

2010-11 में भारत का आसियान के साथ व्यापार घाटा $4.98 अरब था, जो 2024-25 में $44.20 अरब तक पहुंच गया। 2024-25 में:

  • भारत के आसियान को निर्यात में 5.77% की गिरावट आई (कुल $38.96 अरब)।
  • जबकि आयात में 5.65% की वृद्धि हुई (कुल $84.16 अरब)।

कई मामलों में, उत्पादों को चीनी आपूर्तिकर्ताओं द्वारा सब्सिडी दी जाती है, जिससे डंपिंग रोधी कार्रवाई मुश्किल हो जाती है। अब भारत इनपुट लागत की जांच कर रहा है।

भारत की मुख्य मांगें

  • “Rules of Origin” का सख्त पालन, जिससे चीनी वस्तुओं की घुसपैठ रोकी जा सके।
  • गैर-शुल्क बाधाओं (NTBs), आयात कोटा और नियामकीय रुकावटों को खत्म करना।
  • समता आधारित समझौता, जिसमें सभी पक्षों को समान लाभ हो।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • AITIGA जनवरी 2010 से प्रभावी हुआ था।
  • यह 2003 के “फ्रेमवर्क एग्रीमेंट ऑन कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक कोऑपरेशन” से निकला।
  • समझौते में 76.4% वस्तुओं पर शुल्क हटाने की प्रतिबद्धता है।
  • समझौते में भारत के “विशेष उत्पादों” (जैसे पाम ऑयल, चाय, कॉफी, काली मिर्च) के लिए अलग व्यवस्था है।
  • समझौते में “Sensitive” और “Exclusion” सूची की भी व्यवस्था है।

निष्कर्ष

भारत का जोर इस बात पर है कि समझौते की समीक्षा के माध्यम से व्यापार में संतुलन और पारदर्शिता लाई जाए। यदि आसियान देश लचीलापन नहीं दिखाते, तो भारत को रणनीतिक विकल्पों पर विचार करना पड़ सकता है, जिसमें कुछ रियायतों को वापस लेना या समझौते से हटना भी शामिल हो सकता है। आने वाले छह महीने इस संदर्भ में निर्णायक होंगे।

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