आर्थिक सुधार के बावजूद आरबीआई ने की बड़ी ब्याज दर कटौती: क्या है इसकी वजह?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जून 2025 में की गई अप्रत्याशित मौद्रिक कटौतियों ने अर्थशास्त्रियों और निवेशकों को चौंका दिया। रेपो दर में 50 बेसिस प्वाइंट और नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में 100 बेसिस प्वाइंट की कटौती ऐसे समय में की गई जब देश की अर्थव्यवस्था कई संकेतकों के अनुसार स्थिरता की ओर अग्रसर थी। सवाल यह उठता है कि जब भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर दिख रही है, तो RBI ने अचानक इतनी आक्रामक मौद्रिक नीति क्यों अपनाई?

आर्थिक संकेतकों की सकारात्मक तस्वीर

  • जीएसटी संग्रह और ई-वे बिल: जीएसटी संग्रह में निरंतर वृद्धि हो रही है और ई-वे बिल 13% की वार्षिक वृद्धि दिखा रहे हैं, जो आर्थिक गतिविधियों की मजबूती का संकेत है।
  • मुद्रास्फीति: मई 2025 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) घटकर 2.82% रह गया, जो RBI के 4% लक्ष्य से काफी नीचे है। सामान्य मानसून और खाद्य उत्पादन में वृद्धि की संभावना से खाद्य मुद्रास्फीति भी नियंत्रण में है।

फिर क्यों दी गई मौद्रिक राहत?

RBI के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने नीति बैठक के बाद कहा कि “विकास हमारी अपेक्षाओं से कम” है और वैश्विक अनिश्चितता के मद्देनज़र खपत और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए यह कदम आवश्यक था। हालांकि यह तर्क आंशिक रूप से संतोषजनक है, लेकिन कई छिपे हुए आर्थिक दबाव भी इस निर्णय के पीछे हो सकते हैं।

घरेलू खपत पर दबाव के संकेत

  • शहरी खपत: कारों की बिक्री केवल 2% की वार्षिक वृद्धि दिखा रही है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में मोटरसाइकिल और स्कूटर की बिक्री में 9.1% की वृद्धि दर्ज की गई।
  • घरेलू ऋण और बचत: घरेलू ऋण का जीडीपी में अनुपात 36% से बढ़कर 42% हो गया है और क्रेडिट कार्ड ऋण में तीन वर्षों में 50% की वृद्धि हुई है। इसके साथ ही घरेलू बचत दर घटकर 18% रह गई है।

वित्तीय दबाव को कम करने की रणनीति

RBI का उद्देश्य है कि ब्याज दरों को कम करके ऋण की लागत घटाई जाए, जिससे लोगों की मासिक किस्तों में राहत मिले और उनकी खर्च योग्य आय बढ़े। इससे खपत और निवेश को बल मिल सकता है। परंतु केवल सस्ती फंडिंग पर्याप्त नहीं होती — नौकरी की सुरक्षा और आय की स्थिरता जैसी मनोवैज्ञानिक आश्वस्तियाँ भी ज़रूरी होती हैं।

सीमित मौद्रिक गुंजाइश: क्या RBI ने जल्दीबाज़ी की?

  • नीतिगत गुंजाइश की सीमा: रेपो दर पहले ही महामारी काल के 4% से महज़ 1.5% ऊपर है और CRR रिकॉर्ड निचले स्तर पर है। इससे आगे की मौद्रिक राहत की संभावना सीमित हो जाती है।
  • सूखे पाउडर की कमी: सामान्य परिस्थितियों में केंद्रीय बैंक ‘सूखा बारूद’ यानी अतिरिक्त नीति स्थान बचाकर रखते हैं ताकि संकट के समय उसका प्रयोग किया जा सके। RBI के इस निर्णय से उसकी ‘नीतिगत गोला-बारूद’ की सीमा सिमट सकती है।

निष्कर्ष

RBI की दर कटौतियाँ इस ओर संकेत करती हैं कि नीति निर्माता सतह पर दिखने वाले आंकड़ों के परे गहरे तनावों को देख रहे हैं। घरेलू खपत में संभावित गिरावट, बढ़ता ऋण और घटती बचत — ये सभी ऐसे कारक हैं जिनसे भविष्य में अर्थव्यवस्था को दबाव झेलना पड़ सकता है। हालांकि वर्तमान में यह कदम विकास को सहारा देने के लिए उठाया गया है, लेकिन इससे भविष्य में नीतिगत विकल्पों की सीमाएँ भी बन सकती हैं।

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