आर्थिक विकास में टैक्स छूट बनाम सरकारी खर्च: भारत के अनुभव से मिली सीख
अर्थशास्त्र में कुछ विचार ऐसे होते हैं जो वर्षों तक नीति निर्माण को प्रभावित करते हैं। लैफर कर्व (Laffer Curve) ऐसा ही एक विचार है, जिसने यह तर्क दिया कि कर दरों में कटौती से आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ सकती हैं और अंततः सरकार की कर आय भी। भारत में हाल ही में आयकर राहत और GST दरों में सुधार इसी सोच की झलक देते हैं। लेकिन क्या टैक्स छूट अकेले ही विकास को गति दे सकती है? भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति इस प्रश्न का व्यापक विश्लेषण मांगती है।
टैक्स कटौती और मांग में वृद्धि की परिकल्पना
लैफर कर्व का व्यापक तर्क है कि कम कर दरों से लोगों की डिस्पोजेबल इनकम (खर्च योग्य आय) बढ़ती है, जिससे उपभोग में वृद्धि होती है और आर्थिक विकास को बल मिलता है। इसी सोच के तहत भारत सरकार ने हाल में आयकर में राहत दी है, जिससे लगभग ₹1 लाख करोड़ की अतिरिक्त राशि आम जनता के हाथ में आएगी। वहीं, GST दरों के सुधार से सरकार ने ₹48,000 करोड़ का राजस्व त्यागा है। इन नीतियों का उद्देश्य है कि उपभोक्ता खर्च बढ़े और उत्सवों के दौरान मांग को प्रोत्साहन मिले।
क्या टैक्स राहत से उपभोग में स्थायी वृद्धि होती है?
टैक्स छूट का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि उसका लाभ किस आय वर्ग को मिल रहा है। उच्च आय वर्ग आमतौर पर अतिरिक्त आय को बचत या निवेश में लगाता है, जिससे उपभोग पर असर सीमित होता है। इसके विपरीत, मध्यम और निम्न आय वर्ग उपभोग के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं, लेकिन इनके उपभोग का स्वरूप भी सीमित और अक्सर अस्थायी होता है — जैसे त्योहारी मौसम में वाहन या टिकाऊ वस्तुओं की खरीद।
इसलिए, यदि रोज़गार सृजन न हो तो टैक्स राहत से मिली मांग वृद्धि टिकाऊ नहीं बन पाती। स्थायी उपभोग वृद्धि के लिए नए उपभोक्ताओं का जुड़ना आवश्यक है, जो केवल बेहतर रोजगार से संभव है।
व्यय आधारित नीतियाँ: अधिक प्रभावी विकल्प
भारत का हालिया अनुभव दिखाता है कि सरकारी खर्च, विशेष रूप से लक्षित और प्रत्यक्ष व्यय, उपभोग में स्थायी वृद्धि लाने में अधिक प्रभावशाली रहा है। उदाहरण के लिए, निःशुल्क खाद्यान्न योजना, जिससे लगभग 80 करोड़ लोगों को लाभ मिला है, ने निम्न आय वर्ग के व्यय स्वरूप को बदल दिया है। भोजन की आवश्यकता पूरी होने के बाद वे राशि अन्य वस्तुओं पर खर्च करने लगे हैं।
इसी प्रकार, PM-Kisan योजना, महिला-केंद्रित मासिक नकद ट्रांसफर, और MGNREGA जैसी योजनाएँ सीधे उच्च उपभोग प्रवृत्ति वाले घरों तक पैसे पहुँचाती हैं। इसके अलावा, सिलाई मशीन, साइकिल, लैपटॉप जैसी वस्तुएं देने वाली योजनाएँ न केवल उपभोग को बढ़ाती हैं बल्कि उत्पादन और GDP को भी गति देती हैं।
सार्वजनिक पूंजीगत व्यय और विकास का गुणक प्रभाव
बुनियादी ढांचे पर खर्च (Capital Expenditure) व्यय आधारित नीति का सबसे शक्तिशाली साधन है। इससे न केवल मांग को तात्कालिक बढ़ावा मिलता है, बल्कि दीर्घकालिक उत्पादकता भी बढ़ती है। सड़कें, पुल, रेलवे और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे प्रोजेक्ट्स सीमेंट, स्टील, निर्माण उद्योग में मजबूत प्रतिफल पैदा करते हैं और निजी निवेश को आकर्षित करते हैं।
टैक्स छूट से मिली सीमित प्रेरणा: 2019 का उदाहरण
भारत की 2019 की कॉरपोरेट टैक्स कटौती एक चेतावनी भरा उदाहरण है। उस समय उम्मीद थी कि टैक्स में कमी से निजी निवेश में वृद्धि होगी। परंतु, मांग की कमी के कारण कंपनियों ने टैक्स से हुई बचत को निवेश की बजाय रोक कर रखा। यह दर्शाता है कि केवल टैक्स राहत से निवेश स्वाभाविक रूप से नहीं आता।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- लैफर कर्व यह सिद्धांत प्रस्तुत करता है कि अत्यधिक टैक्स दरों से राजस्व घट सकता है।
- PM-Kisan योजना के तहत किसानों को ₹6,000 सालाना दिए जाते हैं।
- MGNREGA भारत का सबसे बड़ा ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम है।
- भारत में GST दरों में हाल के वर्षों में बार-बार बदलाव कर उपभोक्ता मांग को संतुलित करने का प्रयास किया गया है।
अंततः, नीतिगत दृष्टिकोण से स्पष्ट है कि सरकारी व्यय, विशेष रूप से लक्षित और प्रत्यक्ष योजनाएँ, आर्थिक विकास के लिए अधिक भरोसेमंद साधन हैं। टैक्स छूट के मुकाबले इनका असर ज्यादा स्पष्ट, सुनिश्चित और न्यायसंगत होता है। भारत जैसे देश में, जहाँ उपभोग अभी भी असमान रूप से फैला हुआ है, विकास की गति इस बात पर निर्भर करती है कि सरकार टैक्स कितना छोड़ रही है नहीं, बल्कि कहाँ और किन पर खर्च कर रही है।