आर्थिक विकास के लिए समन्वित मौद्रिक नीति की आवश्यकता

आर्थिक विकास के लिए समन्वित मौद्रिक नीति की आवश्यकता

भारतीय अर्थव्यवस्था अब ऐसे चरण में है जहां उचित मौद्रिक और राजकोषीय समन्वय के माध्यम से स्थिर और उच्च विकास संभव है। अतीत में जहां भारत ने संरचनात्मक सुधारों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया, वहीं स्थिरीकरण की भूमिका अक्सर उपेक्षित रही। परंतु, महामारी के बाद के अनुभवों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि परिस्थितियों के अनुसार समायोजित की गई मौद्रिक-राजकोषीय नीति से उच्च वृद्धि और कम मुद्रास्फीति एक साथ प्राप्त की जा सकती है।

मौद्रिक और राजकोषीय नीति में संतुलन की भूमिका

राजकोषीय नीति का दीर्घकालिक उद्देश्य आपूर्ति क्षमता को बढ़ाना होना चाहिए — जैसे कि आधारभूत ढांचा, मानव संसाधन विकास और लक्षित सामाजिक कल्याण पर व्यय। इससे दीर्घकालिक गैर-मुद्रास्फीतिकारी वृद्धि की संभावनाएं बढ़ती हैं। वहीं मौद्रिक नीति का दायित्व है कि मांग को इस सीमा तक प्रोत्साहित करे जहां उत्पादन अपनी संभाव्य सीमा के निकट हो।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत का सम्मिलित राजकोषीय घाटा विश्व में सबसे ऊंचे स्तरों में से एक है।
  • वास्तविक ब्याज दर (Real Interest Rate) यदि 2% से अधिक हो, तो भारत में आर्थिक वृद्धि धीमी पाई गई है।
  • वर्तमान में कोर मुद्रास्फीति (ex-gold) एक वर्ष से भी अधिक समय से 3.5% से कम है।
  • मौद्रिक नीति की “Neutral Stance” का अर्थ है कि RBI आगामी आंकड़ों के आधार पर दरों में बदलाव करेगा।

वृद्धि को सहयोग देने वाली नीति संरचना

भारत जैसे उभरते हुए बाजारों में जब युवा आबादी घर बसा रही हो और वित्तीय प्रणाली औपचारिकता की ओर बढ़ रही हो, तब मांग की ब्याज संवेदनशीलता अधिक होती है। अतः कम, लेकिन सकारात्मक वास्तविक ब्याज दर से न केवल निवेश सस्ता होता है, बल्कि बचतकर्ताओं को भी उचित प्रतिफल मिलता है। इसके अलावा, मुद्रास्फीति यदि नियंत्रित और स्थिर हो, तो निवेश संसाधनों की आपूर्ति और मांग के बीच संतुलन बना रहता है।

वर्तमान मौद्रिक नीति पर आवश्यक सुधार

वर्तमान में, भले ही 100 आधार अंकों की कटौती हो चुकी हो, परंतु वास्तविक ब्याज दर अभी भी 3% से अधिक बनी हुई है। यह दर भारत की संभाव्य वृद्धि दर के अनुकूल नहीं है। RBI को Q4 FY26 के लिए 4.4% मुद्रास्फीति का अनुमान है, परंतु यह केवल आधार प्रभाव का परिणाम है। जब कोर मुद्रास्फीति 3.5% से नीचे बनी हुई है, तब RBI को 4% मुद्रास्फीति लक्ष्य के साथ काम करना चाहिए और उसके अनुसार वास्तविक दर तय करनी चाहिए।
इस परिप्रेक्ष्य में, 25 आधार अंकों की एक और कटौती से वास्तविक ब्याज दर लगभग 0.75% हो जाएगी, जो आर्थिक गतिविधियों को समर्थन देने के लिए उपयुक्त है। चूंकि ब्याज दरों के प्रभाव में समय लगता है, इसलिए इसे आगे टालना तर्कसंगत नहीं होगा।

तरलता प्रबंधन और बाज़ार स्थिरता

तरलता प्रबंधन में अति-प्रतिक्रिया से बचना चाहिए। अल्पकालिक असंतुलन को नियंत्रित करने के लिए, RBI द्वारा अल्पकालिक साधनों का सक्रिय उपयोग आवश्यक है, जिससे कॉल मनी दर रेपो दर के करीब बनी रहे। इस तरह की पारदर्शिता और पूर्वानुमानयोग्यता वित्तीय बाज़ारों में विश्वास को बढ़ाती है।

Originally written on August 6, 2025 and last modified on August 6, 2025.

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