आर्थिक पूंजी ढांचे में बदलाव: सरकार को आरबीआई से अधिशेष हस्तांतरण में नई लचीलापन नीति

आर्थिक पूंजी ढांचे में बदलाव: सरकार को आरबीआई से अधिशेष हस्तांतरण में नई लचीलापन नीति

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा हाल ही में संशोधित आर्थिक पूंजी ढांचा (Economic Capital Framework – ECF) का उद्देश्य सरकार को अधिशेष (surplus) हस्तांतरण की प्रक्रिया को सुचारु रूप से अंजाम देना है, जिससे किसी वित्तीय वर्ष में सरकारी राजकोषीय गणित प्रभावित न हो। यह नीति विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान वैश्विक अस्थिरता और जोखिमों को ध्यान में रखते हुए अधिक लचीलापन प्रदान करती है।

क्या है संशोधित आर्थिक पूंजी ढांचा?

आरबीआई का आर्थिक पूंजी ढांचा उसकी बैलेंस शीट पर संभावित जोखिमों को देखते हुए एक सुरक्षा कवच प्रदान करता है। इसमें ‘Contingent Risk Buffer’ (CRB) प्रमुख भूमिका निभाता है। पहले यह सीमा 5.5% से 6.5% के बीच थी, लेकिन हाल ही में इसे बढ़ाकर 4.5% से 7.5% किया गया है। इसका अर्थ है कि आरबीआई अब किसी भी वित्तीय वर्ष में आवश्यकतानुसार अपने अधिशेष हस्तांतरण में परिवर्तन कर सकता है।

2024-25 में रिकॉर्ड अधिशेष और इसका आधार

2024-25 में, आरबीआई ने सरकार को ₹2.69 लाख करोड़ का रिकॉर्ड अधिशेष हस्तांतरित किया, जबकि उसने 7.5% का उच्चतम जोखिम बफर बनाए रखा। यह अधिशेष मुख्यतः विदेशी मुद्रा लेन-देन से हुई कमाई, सरकारी प्रतिभूतियों से प्राप्त ब्याज, और संपत्तियों के पुनर्मूल्यांकन हानि में कमी के कारण संभव हुआ।

जोखिम बफर में बदलाव का महत्व

IDFC फर्स्ट बैंक की प्रमुख अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता के अनुसार, यदि किसी वर्ष आरबीआई के लिए परिस्थितियाँ अनुकूल हों, तो वह उच्च CRB बनाए रखते हुए भी अधिक अधिशेष हस्तांतरित कर सकता है। विपरीत परिस्थिति में, कम बफर रखते हुए अधिशेष को स्थिर बनाए रखा जा सकता है।

बिमल जालान समिति की सिफारिश और समीक्षा प्रक्रिया

बिमल जालान की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर 2019 में ईसीएफ को अपनाया गया था। समिति ने हर पांच वर्ष में इस ढांचे की समीक्षा करने की सिफारिश की थी। हालिया समीक्षा में यह पाया गया कि यह ढांचा आरबीआई की बैलेंस शीट को सुदृढ़ बनाए रखने और सरकार को पर्याप्त अधिशेष देने के अपने उद्देश्य में सफल रहा है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • Contingent Risk Buffer (CRB): यह आरबीआई द्वारा बनाए गए वह भंडार है, जो अप्रत्याशित वित्तीय जोखिमों से निपटने के लिए होता है।
  • बिमल जालान समिति: 2018 में गठित यह समिति आरबीआई की अधिशेष नीति की समीक्षा हेतु बनाई गई थी।
  • 2024-25 अधिशेष: ₹2.69 लाख करोड़ – अब तक का सबसे बड़ा अधिशेष हस्तांतरण।
  • विदेशी मुद्रा लेन-देन से आय: 2024-25 में $399 बिलियन की सकल बिक्री – FY24 के $153 बिलियन से काफी अधिक।
  • आरबीआई का अधिशेष हस्तांतरण: राजकोषीय घाटा नियंत्रण और व्यय योजनाओं के लिए सरकार के लिए एक अहम स्रोत।

संशोधित आर्थिक पूंजी ढांचा आरबीआई को अपनी नीतियों में अनुकूलता लाने और देश की राजकोषीय स्थिरता में योगदान देने में अधिक लचीलापन प्रदान करता है। यह सरकार के लिए भी एक भरोसेमंद वित्तीय स्रोत सुनिश्चित करता है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक और घरेलू आर्थिक परिदृश्य लगातार बदल रहे हैं।

Originally written on May 28, 2025 and last modified on May 28, 2025.

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