आपराधिक मामलों में DNA साक्ष्य की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की नयी गाइडलाइंस

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण फैसले में, Kattavellai @ Devakar बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में, DNA साक्ष्य की शुद्धता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह मामला बलात्कार, हत्या और डकैती से संबंधित था, जिसमें जांच एजेंसियों की लापरवाही के कारण DNA नमूनों के विश्लेषण में गंभीर त्रुटियाँ सामने आईं।
इन कमियों के चलते, नमूनों की शुद्धता पर संदेह उत्पन्न हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी स्थिति दोबारा न हो, इसके लिए देशभर के पुलिस प्रमुखों को दिशानिर्देश लागू करने के निर्देश दिए।

दिशानिर्देश जारी करने की आवश्यकता क्यों पड़ी?

इस मामले में वेजाइनल स्वैब नमूनों को फॉरेंसिक लैब (FSL) भेजने में अनावश्यक देरी और चेन ऑफ कस्टडी (Chain of Custody) को स्थापित करने में विफलता देखी गई। कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में नमूनों के दूषित होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता
हालाँकि कुछ संस्थाओं द्वारा पूर्व में दिशा-निर्देश जारी किए गए थे, लेकिन एकीकृत और सार्वभौमिक प्रक्रिया का अभाव था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेदों के अंतर्गत राज्य सूची में ‘पुलिस’ और ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ होने के बावजूद, सभी राज्यों के लिए समान गाइडलाइंस तय करना जरूरी समझा।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी चार प्रमुख दिशानिर्देश

  1. साक्ष्य संग्रहण और दस्तावेज़ीकरण:DNA नमूने लेने के बाद, उचित पैकेजिंग और स्पष्ट जानकारी जैसे एफआईआर नंबर, तारीख, धारा, जांच अधिकारी का विवरण, थाना आदि का उल्लेख अनिवार्य होगा।यह दस्तावेज़ चिकित्सा पेशेवर, जांच अधिकारी और स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर के साथ तैयार होगा।
  2. नमूनों का त्वरित परिवहन:जांच अधिकारी की जिम्मेदारी होगी कि DNA नमूना संबंधित पुलिस स्टेशन या अस्पताल पहुँचाए और 48 घंटे के भीतर FSL भेजे।देरी होने पर कारण दर्ज करना अनिवार्य होगा और नमूनों को सुरक्षित रखने की पूरी कोशिश की जाएगी।
  3. न्यायिक स्वीकृति के बिना कोई पैकेज नहीं खुलेगा:मुकदमे या अपील लंबित रहने तक, कोई भी नमूना बिना ट्रायल कोर्ट की अनुमति के न खोला जाएगा, न बदला जाएगा, न ही फिर से सील किया जाएगा
  4. चेन ऑफ कस्टडी रजिस्टर अनिवार्य:नमूना संग्रह से लेकर आरोपी की सज़ा या बरी होने तक, एक Chain of Custody Register बनाए रखना अनिवार्य होगा। यह रजिस्टर ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड में संलग्न किया जाएगा।कोई भी चूक होने पर जांच अधिकारी जवाबदेह होगा।

DNA साक्ष्य की कानूनी स्थिति और महत्व

  • DNA प्रोफाइलिंग अपराध जांच में एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन इसका प्रमाणिक मूल्य इसकी गुणवत्ता और प्रक्रिया पर निर्भर करता है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने Devakar मामले में स्पष्ट किया कि लैब से पहले और बाद दोनों चरणों में गुणवत्ता नियंत्रण ज़रूरी है
  • Anil बनाम महाराष्ट्र राज्य (2014) में कोर्ट ने DNA को विश्वसनीय माना था, लेकिन अन्य मामलों जैसे Manoj बनाम मध्य प्रदेश (2022) और Rahul बनाम दिल्ली राज्य (2022) में नमूनों की संदिग्ध हैंडलिंग के कारण DNA साक्ष्य खारिज कर दिए गए थे।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • DNA साक्ष्य ‘मत विशेषज्ञ साक्ष्य’ (opinion evidence) के रूप में माने जाते हैं और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 (अब ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023’ की धारा 39) के अंतर्गत आते हैं।
  • चेन ऑफ कस्टडी का अभाव DNA साक्ष्य की वैधता को प्रभावित कर सकता है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी जांच अधिकारी की होगी, और कोई चूक उसे न्यायिक रूप से स्पष्टीकरण के लिए बाध्य करेगी।
  • FSL में समय पर और वैज्ञानिक तरीके से परीक्षण सुनिश्चित करना न्याय की दिशा में अनिवार्य है।

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