आदिकवि पंपा, कन्नड कवि

आदिकवि पंपा, कन्नड कवि

पम्पा 10 वीं शताब्दी ईस्वी के प्रसिद्ध कन्नड़ कवि हैं। उनका जन्म भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश के वेमुलावाड़ा में हुआ था। वह एक और दो प्रसिद्ध कवि अर्थात् रन्ना और पोन्ना के समकालीन हैं। उन्हें एक साथ त्रिरत्न कहा जाता था। उन्हें कन्नड़ साहित्य के सबसे महान कवियों में से एक माना जाता है और आज भी गर्व से याद किया जाता है। पम्पा कन्नड़ में अपनी रचनाएँ लिखते थे, जब उस क्षेत्र में बादामी के चालुक्य शासन कर रहे थे। पम्पा को ‘आदिपी पम्पा’ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म 902 ईस्वी में हुआ था। पंपा राष्ट्रकूट राजाओं के दरबारी कवि भी थे। पम्पा की दो महान रचनाएँ ‘आदि पुराण’ और ‘विक्रमराजन-विजया’ हैं। उन्होंने उन्हें तब लिखा था जब वह केवल उनतीस वर्ष की थीं। पम्पा के पिता अभिरामरदेवराय ब्राह्मण थे किन्तु उन्होने जैन धर्म में धर्मांतरण किया और इस तरह पम्पा अपने जीवन भर जैन धर्म के कट्टर अनुयायी बने रहे। उनके छोटे भाई जिनवल्लभ के ‘गंगाधरम’ शिलालेख के अनुसार, उनके पिता को भीमप्पय्या के नाम से भी जाना जाता था।
‘आदि पुराण’ पंपा की एक रचना है, जिसमें चौबीस जैन तीर्थंकरों के इतिहास के बारे में वर्णन किया गया है। उन्हें कन्नड़ का ‘आदि कवि’ या ‘पहला कवि’ माना जाता है। ‘पम्पा भरत’ कवि पंपा की रचना है, जिसने उन्हें कवि के रूप में बड़ी पहचान दिलाई। यह एक लेखन था ‘महाभारत’ पर आधारित था। पम्पा ने महाकाव्य ‘अर्जुन’ के नायक के साथ उसकी पहचान करके अपने राजा अरिकेसरीन को इस काम में अमर करने की कोशिश की। उनका `पम्पा भरत` मात्र अनुवाद नहीं है, बल्कि उसमें बहुत मौलिकता है, जो इस चंचल कवि की कल्पना और प्रतिभा को दर्शाता है। अपने सभी लेखन में, अपनी मातृभूमि के लिए प्यार, प्राचीन कर्नाटक काफी दर्शनीय है। संस्कृत के लेखन में भी पम्पा पर्याप्त योग्य थे।

Originally written on December 25, 2020 and last modified on December 25, 2020.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *