आकाशगंगा में धूल कणों का रहस्य उजागर: भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजे तीन संरेखण तंत्र

सदियों से वैज्ञानिक मानते आए हैं कि जैसे प्रकाश की किरण में नाचते धूल कण अपने वातावरण की कहानी कहते हैं, वैसे ही अंतरिक्ष में फैले सूक्ष्म धूल कण ब्रह्मांड की कहानियाँ समेटे होते हैं। अब, भारतीय खगोलविदों की एक टीम ने आकाशगंगा के भीतर इन धूल कणों के चुंबकीय क्षेत्रों के साथ संरेखण के पीछे की यांत्रिकी को समझने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है।

धूल कणों की भूमिका और खगोल भौतिकी में महत्व

आकाशगंगा और अन्य आकाशगंगाओं के इंटरस्टेलर मीडियम में पाए जाने वाले ये धूल कण सिलिकेट्स और कार्बन पदार्थों से बने होते हैं और आकार में कुछ माइक्रोमीटर के होते हैं। ये कण तारों और ग्रहों के निर्माण सहित कई खगोलीय प्रक्रियाओं में अहम भूमिका निभाते हैं। 1949 में पहली बार यह देखा गया कि कुछ तारों से आने वाला प्रकाश रैखिक रूप से ध्रुवीकृत होता है, जिसका मुख्य कारण इन असममित धूल कणों द्वारा चुंबकीय क्षेत्रों के साथ संरेखण था।

भारतीय शोधकर्ताओं की नई खोज

बेंगलुरु स्थित भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) और उसके सहयोगियों ने मिलकर G34.43+0.24 नामक एक विशाल तारा-निर्माण क्षेत्र का अध्ययन किया, जो पृथ्वी से लगभग 12,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। यह एक इन्फ्रारेड डार्क क्लाउड है, जिसमें कई घने कोर हैं, जहां प्रोटोस्टार (प्रारंभिक ताराएं) बन रही हैं—जैसे MM1, MM2 और MM3।
हवाई द्वीप में स्थित James Clerk Maxwell Telescope के POL-2 पोलारिमीटर की सहायता से उन्होंने इस बादल में धूल और चुंबकीय क्षेत्रों के संरेखण को मैप किया।

तीन संरेखण तंत्रों की पुष्टि

शोध में वैज्ञानिकों ने पहली बार एक ही खगोलीय बादल में तीन विभिन्न संरेखण तंत्रों के साक्ष्य पाए:

  • RAT-A (Radiative Torque Alignment): जब असममित धूल कण किसी दिशा विशेष से आने वाले विकिरण का सामना करते हैं, तो वे घूमने लगते हैं और चुंबकीय क्षेत्र के अनुरूप संरेखित हो जाते हैं।
  • RAT-D (Radiative Torque Disruption): जब विकिरण बहुत तीव्र होता है, तब बड़े कण इतनी तीव्र गति से घूमने लगते हैं कि वे टूटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर जाते हैं, जिससे ध्रुवीकरण की मात्रा कम हो जाती है।
  • M-RAT (Magnetically-enhanced Radiative Torque): यदि कणों की चुंबकीय शिथिलता शक्ति अधिक हो, तो वे अधिक कुशलता से संरेखित होते हैं, जिससे ध्रुवीकरण प्रतिशत बढ़ता है।

इन परिणामों से यह स्पष्ट होता है कि धूल कण विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग प्रतिक्रिया देते हैं—कभी चुंबकीय क्षेत्रों के साथ आसानी से संरेखित हो जाते हैं, कभी विकिरण से टूट जाते हैं और कभी अत्यंत प्रभावशाली रूप से चुंबकीय क्षेत्रों को दर्शाते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • ध्रुवीकृत प्रकाश का पहला खगोलीय अवलोकन वर्ष 1949 में हुआ था।
  • James Clerk Maxwell Telescope दुनिया की सबसे उन्नत उपमिलीमीटर वेवलेंथ दूरबीनों में से एक है।
  • प्रोटोस्टार ऐसे नवजात तारे होते हैं जो अभी भी गैस और धूल के आवरण में ढंके होते हैं।
  • धूल कणों द्वारा ध्रुवीकृत उत्सर्जन खगोलशास्त्र में चुंबकीय क्षेत्रों की संरचना समझने का एक प्रमुख तरीका है।

इस शोध को The Astrophysical Journal में प्रकाशित किया गया है और यह न केवल अंतरिक्ष में धूल कणों की भूमिका को गहराई से समझने में मदद करेगा, बल्कि आकाशगंगा के विशाल चुंबकीय नेटवर्क को मैप करने के प्रयासों को भी गति देगा।
यह खोज यह दिखाती है कि हमारी आकाशगंगा के भीतर के रहस्यों को समझने में भारत अब अग्रिम पंक्ति में है। चुंबकीय क्षेत्रों की बेहतर समझ न केवल तारों के निर्माण को स्पष्ट करती है, बल्कि पूरे ब्रह्मांड की संरचना को समझने का मार्ग भी प्रशस्त करती है।

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