असम में हर साल क्यों आती हैं विनाशकारी बाढ़ें?

असम में हर वर्ष मानसून के आगमन के साथ ही बाढ़ का खतरा गहराने लगता है। इस बार भी राज्य के कई जिलों में भारी वर्षा के चलते नदियाँ उफान पर हैं, गाँव जलमग्न हो चुके हैं, और हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं। हर साल यह त्रासदी क्यों दोहराई जाती है, इसके पीछे कई प्राकृतिक और मानवनिर्मित कारण हैं।

भौगोलिक और जलवायु संबंधी कारण

असम ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में स्थित है, जो प्राकृतिक रूप से एक बाढ़-प्रवण क्षेत्र है। ब्रह्मपुत्र, जो विश्व की सबसे बड़ी नदियों में से एक है, अपनी अनेक सहायक नदियों के साथ मिलकर मानसून के दौरान भारी मात्रा में पानी और तलछट लेकर आती है। इससे नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ता है और वे अपने किनारों को तोड़कर आसपास के क्षेत्रों में फैल जाती हैं।

जलवायु परिवर्तन और अनियमित वर्षा

हाल के वर्षों में असम में वर्षा की प्रकृति में बड़ा बदलाव आया है। अब कम समय में अत्यधिक वर्षा होने लगी है, जिससे फ्लैश फ्लड्स यानी आकस्मिक बाढ़ की घटनाएँ बढ़ गई हैं। वर्षा का यह पैटर्न जलवायु परिवर्तन से जुड़ा हुआ है और इससे पारंपरिक जलनिकासी प्रणालियाँ भी बेअसर हो जाती हैं।

नदी तल में गाद जमाव और जलधारण क्षमता में कमी

असम में वनों की कटाई और भूमि क्षरण के कारण नदियों में हर साल भारी मात्रा में गाद जमा हो रही है। इससे नदी तल ऊँचा हो जाता है और जलधारण क्षमता घट जाती है। नतीजतन, थोड़ी सी भी अधिक वर्षा से नदियाँ उफान पर आ जाती हैं और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है।

बांधों से पानी का अचानक छोड़ा जाना

राज्य और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर बने बांधों से पानी के अचानक छोड़े जाने से भी बाढ़ की स्थिति और गंभीर हो जाती है। जब बिना पूर्व चेतावनी के पानी छोड़ा जाता है, तो निचले इलाकों में रहने वाले लोग इसका शिकार बनते हैं और जान-माल का भारी नुकसान होता है।

कमजोर बुनियादी ढांचा और शहरी जल निकासी की समस्याएँ

असम का बाढ़ नियंत्रण ढांचा वर्षों पुराना और कमजोर हो चुका है। कई तटबंध समय के साथ जर्जर हो गए हैं और जरा सी अधिक वर्षा में टूट जाते हैं। शहरी क्षेत्रों में अनियोजित निर्माण और जाम जलनिकासी व्यवस्था के कारण थोड़ी सी बारिश भी भारी जलभराव में बदल जाती है।

बार-बार विस्थापन और आर्थिक नुकसान

हर साल आने वाली बाढ़ केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानवीय संकट भी बन चुकी है। हजारों लोग अपने घरों से बेघर हो जाते हैं, फसलें नष्ट होती हैं, और स्कूल व अस्पताल बंद हो जाते हैं। राहत शिविरों में संसाधनों की कमी होती है, जिससे प्रभावित लोगों को बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं मिल पातीं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • असम में ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियाँ मानसून के दौरान सबसे अधिक उफान पर होती हैं।
  • धेमाजी, लखीमपुर, बारपेटा और दर्रांग जिले बार-बार बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
  • असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ASDMA) प्रत्येक वर्ष बाढ़ से संबंधित चेतावनी और राहत कार्यों का संचालन करता है।
  • गुवाहाटी जैसे शहरी क्षेत्रों में जलभराव एक सामान्य समस्या बन चुकी है, जो शहरी नियोजन की कमी को दर्शाता है।
  • मानसून के दौरान स्कूलों, अस्पतालों और यातायात सेवाओं पर बाढ़ का व्यापक असर पड़ता है।

असम की बाढ़ अब केवल मौसमी समस्या नहीं रही, बल्कि यह एक सतत आपदा बन चुकी है। जब तक नदियों की गाद निकासी, मजबूत तटबंधों का निर्माण, सटीक बाढ़ पूर्वानुमान और अंतर्राज्यीय जल प्रबंधन जैसे दीर्घकालिक उपाय नहीं किए जाते, तब तक असम के लाखों लोग हर वर्ष इसी तरह त्रासदी झेलते रहेंगे।

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