असम में सत्रों की भूमि संरक्षण के लिए अर्ध-न्यायिक आयोग की स्थापना हेतु विधेयक पेश
असम सरकार ने राज्य विधानसभा में एक नया विधेयक पेश किया है, जिसके तहत सत्रों (Vaishnavite monasteries) की भूमि और सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा के लिए एक अर्ध-न्यायिक संस्था गठित की जाएगी। इस पहल का उद्देश्य असम की वैष्णव परंपरा को संरक्षित करते हुए योजनाबद्ध और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील विकास को सुनिश्चित करना है।
असम सत्र संरक्षण एवं विकास आयोग
प्रस्तावित कानून के तहत “असम सत्र संरक्षण एवं विकास आयोग” (Assam Satra Preservation and Development Commission) का गठन किया जाएगा। यह आयोग विशेष रूप से सत्रों और उनसे संबंधित संपत्तियों के संरक्षण, सुरक्षा और विकास के लिए कार्य करेगा। आयोग को अर्ध-न्यायिक अधिकार प्राप्त होंगे, जिससे वह सत्र भूमि विवादों, धरोहर संरक्षण तथा प्रशासनिक नियमन से जुड़े मामलों की निगरानी और समाधान कर सकेगा।
कार्यक्षेत्र और मुख्य दायित्व
यह आयोग सत्रों का सर्वेक्षण और निरीक्षण करने, अतिक्रमण के मामलों में स्वत: संज्ञान (suo motu) लेने और सत्र परिसरों के संरक्षण एवं पुनरुद्धार से संबंधित सिफारिशें करने में सक्षम होगा। इसके अतिरिक्त, यह संस्था सत्रों की भूमि और संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने, धार्मिक-सांस्कृतिक संवेदनशीलता के अनुरूप विकास को प्रोत्साहित करने और पारंपरिक संरचनाओं व कलाकृतियों के संरक्षण की जिम्मेदारी निभाएगी।
अर्ध-न्यायिक अधिकार और कानूनी ढांचा
विधेयक के अनुसार, आयोग को दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत एक सिविल कोर्ट के समान अधिकार प्रदान किए जाएंगे। इसमें सम्मन जारी करना, हलफनामे स्वीकार करना, दस्तावेज़ों की जांच, आदेशों की समीक्षा, कमीशन नियुक्त करना और लागत निर्धारण जैसे अधिकार शामिल होंगे। आयोग अपने आदेशों में त्रुटि-सुधार कर सकेगा और सौंपे गए मामलों पर विशिष्ट अधिकार क्षेत्र (exclusive jurisdiction) रखेगा। इस प्रक्रिया में न्यायिक पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए सभी वैधानिक प्रावधानों का पालन किया जाएगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- विधेयक के तहत “असम सत्र संरक्षण एवं विकास आयोग” एक अर्ध-न्यायिक निकाय के रूप में गठित किया जाएगा।
- आयोग को दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत सिविल कोर्ट जैसे अधिकार प्राप्त होंगे।
- “असम सत्र संरक्षण एवं विकास कोष” (Fund) की स्थापना की जाएगी, जिसका लेखा-परिक्षण महालेखा परीक्षक (असम) द्वारा किया जाएगा।
- आयोग में अधिकारी अस्थायी प्रतिनियुक्ति (deputation) के आधार पर नियुक्त किए जाएंगे, ताकि स्थायी कैडर पर अतिरिक्त भार न पड़े।
वित्त, संचालन और धरोहर संरक्षण
विधेयक में “असम सत्र संरक्षण एवं विकास कोष” की स्थापना का भी प्रावधान है, जो वार्षिक बजटिंग, लेखा रिपोर्टिंग और पारदर्शी ऑडिट प्रणाली सुनिश्चित करेगा। राज्य सरकार आयोग को नीतिगत दिशा-निर्देश जारी कर सकेगी और आवश्यकतानुसार अतिरिक्त दायित्व सौंपे जा सकेंगे। यह कानून सत्रों की भूमि पर अतिक्रमण रोकने, वैष्णव धरोहर की सुरक्षा करने और असम की सांस्कृतिक अस्मिता को सशक्त कानूनी आधार प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।