असम को 2027 में मिलेगा ‘वृंदावनी वस्त्र’: एक सांस्कृतिक धरोहर की घर वापसी

असम की सांस्कृतिक विरासत से जुड़ा एक महत्वपूर्ण अध्याय अब नया मोड़ ले रहा है। 16वीं शताब्दी में संत-समाज सुधारक श्रीमंत शंकरदेव के मार्गदर्शन में बुना गया ‘वृंदावनी वस्त्र’ अब असम लौटने की ओर अग्रसर है। यह प्रसिद्ध रेशमी वस्त्र, जो इस समय लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित है, 2027 में असम में प्रदर्शनी के लिए लाया जाएगा — बशर्ते कुछ शर्तों का पालन किया जाए।

क्या है वृंदावनी वस्त्र?

वृंदावनी वस्त्र एक बेजोड़ रेशमी कपड़ा है, जिसे असम में वैष्णव परंपरा के उत्थानकर्ता श्रीमंत शंकरदेव की प्रेरणा से तैयार किया गया था। यह वस्त्र भगवान कृष्ण के जीवन के विविध दृश्यों को चित्रित करता है। इसमें ‘कालयदमन’ नाट्यकाव्य की 11 पंक्तियाँ, विष्णु के दशावतार, तथा अन्य धार्मिक प्रसंगों का चित्रात्मक वर्णन है। इसे ‘लैम्पस’ नामक जटिल बुनाई तकनीक से बुना गया था, जिसमें दो बुनकरों की आवश्यकता होती है।

कैसे पहुँचा यह वस्त्र ब्रिटिश म्यूजियम तक?

ऐसा माना जाता है कि 17वीं-18वीं शताब्दी में वृंदावनी वस्त्र के टुकड़े तिब्बत पहुँचे, जहाँ से 19वीं-20वीं शताब्दी में ब्रिटिश खोजकर्ताओं द्वारा इन्हें संग्रहित किया गया। इसके पश्चात ये भारत म्यूजियम और फिर ब्रिटिश म्यूजियम में पहुँचे। वर्तमान में, ब्रिटिश म्यूजियम में संरक्षित वस्त्र 12 पट्टियों से मिलकर बना है, जिसकी कुल लंबाई 9.37 मीटर और ऊँचाई 2.31 मीटर है।

भारत वापसी की पहल और शर्तें

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने प्रेस वार्ता में बताया कि लंबे समय से चली आ रही मांग के बावजूद वृंदावनी वस्त्र को भारत लाने में सफलता नहीं मिल पाई थी। लेकिन अब ब्रिटिश म्यूजियम ने इसे 18 महीनों के लिए असम को उधार पर देने की सहमति जताई है। इसके लिए असम सरकार को कुछ आवश्यक शर्तों का पालन करना होगा:

  • गुवाहाटी में अत्याधुनिक संग्रहालय का निर्माण, जिसमें पर्यावरणीय और सुरक्षा मानकों का पालन हो।
  • भारत के राष्ट्रपति की ओर से ब्रिटिश म्यूजियम को वस्त्र की सुरक्षित वापसी की ‘सॉवरेन गारंटी’।
  • केंद्र सरकार, ब्रिटिश म्यूजियम, भारतीय राजदूत और JSW समूह के सहयोग से परियोजना का संचालन।

JSW समूह इस संग्रहालय को कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) योजना के तहत बनाएगा और निर्माण उपरांत इसे सरकार को सौंपेगा।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • श्रीमंत शंकरदेव: 15वीं-16वीं शताब्दी के संत, कवि और समाज सुधारक, असमिया वैष्णव संप्रदाय के प्रणेता।
  • लैम्पस तकनीक: दो सेट ताने-बाने से बनी जटिल बुनाई प्रणाली, जिसमें दो बुनकरों की आवश्यकता होती है।
  • कालयदमन: शंकरदेव द्वारा रचित नाट्यकाव्य, जिसमें भगवान कृष्ण द्वारा कालिया नाग के वध का वर्णन है।
  • ब्रिटिश म्यूजियम: लंदन स्थित विश्वप्रसिद्ध संग्रहालय, जहाँ भारतीय विरासत की कई महत्वपूर्ण कलाकृतियाँ संग्रहीत हैं।

इस ऐतिहासिक वस्त्र की वापसी न केवल असम की सांस्कृतिक अस्मिता के लिए महत्त्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की समृद्ध कला परंपरा को भी वैश्विक मंच पर पुनः स्थापित करेगा। यह पहल दर्शाती है कि यदि सरकार, समाज और अंतर्राष्ट्रीय संस्थान मिलकर प्रयास करें, तो सांस्कृतिक धरोहरों की ‘घर वापसी’ संभव है।

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