अलखिया सम्प्रदाय

अलखिया सम्प्रदाय

लालगिरि जी ने अलखिया सम्प्रदाय की स्थापना की। उनका जन्म 19वीं शताब्दी के शुरुआती वर्षों में सुलखनिया गांव में एक मोची परिवार में हुआ था। बचपन में उन्हें दादू संप्रदाय की नागा शाखा के एक साधु ने ले लिया था। लगभग पंद्रह वर्षों के बाद वे 1829 में बीकानेर लौट आए और उपदेश देने लगे। कई लोग उनके शिष्य बन गए। उन्होंने अलख सागर के नाम से प्रसिद्ध बीकानेर के प्रसिद्ध विशाल कुएं के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी उपलब्ध वाणी आसान राजस्थानी में है और इसमें केवल 29 सबब हैं। उनके लिए अलख, जो निराकर, निर्लेप और निरंजन हैं, एकमात्र परम सत्य हैं। वे इसी अलख की उपासना को सार्थक मानते हैं। इसलिए इस सम्प्रदाय का नाम अलखिया पड़ा। उन्होंने नाथ शैली और शब्दावली का प्रयोग किया है। सम्मानजनक अभिवादन की स्वीकृत प्रणाली ‘अलख-मौला’ है। संप्रदाय बीकानेर और आसपास के क्षेत्रों में लोकप्रिय था। उनके अनुयायी ज्यादातर समाज के पिछड़े वर्गों से आते थे। समाज के सभी वर्गों को जाति, पंथ या सामाजिक स्थिति से परे लालगिरि संप्रदाय में शामिल किया गया था। लालगिरि जी ने अपने सभी अनुयायियों को परम सत्य की खोज के लिए प्रेरित किया था।

Originally written on January 22, 2022 and last modified on January 22, 2022.

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