अरुणाचल प्रदेश के पारंपरिक ‘दाओ’ ब्लेड को मिला जीआई टैग
अरुणाचल प्रदेश के पारंपरिक ‘दाओ’ एक हस्तनिर्मित ब्लेड जो राज्य की कई जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है को भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication, GI) टैग प्रदान किया गया है। यह मान्यता न केवल इस पारंपरिक हथियार के शिल्प कौशल और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करती है, बल्कि राज्य की धातुकला विरासत में निहित आर्थिक संभावनाओं को भी उजागर करती है।
स्वदेशी कारीगरी को मिली औपचारिक पहचान
जीआई टैग इस दाओ ब्लेड को उसके मूल क्षेत्र से जुड़ा एक विशिष्ट सांस्कृतिक उत्पाद के रूप में औपचारिक मान्यता देता है। पारंपरिक लोहारों द्वारा पीढ़ियों से हस्तनिर्मित यह ब्लेड अपनी सटीकता, प्रतीकात्मकता और दैनिक उपयोगिता के लिए जाना जाता है। अधिकारी बताते हैं कि यह प्रमाणन पारंपरिक फोर्जिंग तकनीकों को संरक्षित करने, उत्पाद की प्रामाणिकता बनाए रखने और जनजातीय कारीगरों की पहचान की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
कारीगर समुदायों पर आर्थिक प्रभाव
जीआई टैग मिलने से ग्रामीण कारीगरी समूहों की बाजार पहुँच में सुधार की उम्मीद है। बेहतर ब्रांडिंग और उपभोक्ताओं के बढ़ते विश्वास से कारीगरों की आमदनी में स्थिरता आएगी। राज्य सरकार ने प्रशिक्षण, गुणवत्ता सुधार कार्यक्रमों और प्रचार अभियानों के माध्यम से इन पारंपरिक धातुकला समुदायों के लिए नए अवसर सृजित करने की योजना बनाई है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- जीआई टैग उन उत्पादों को सुरक्षा प्रदान करता है जो किसी विशेष क्षेत्र और पारंपरिक ज्ञान से जुड़े होते हैं।
- अरुणाचल प्रदेश अब तक लगभग 20 उत्पादों के लिए जीआई टैग प्राप्त कर चुका है।
- दाओ का जीआई टैग जनजातीय लोहारों की पारंपरिक तकनीकों के संरक्षण में सहायक होगा।
- भारत में जीआई रजिस्ट्री “भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999” के तहत कार्य करती है।
बढ़ती मान्यता और भविष्य की दिशा
अरुणाचल प्रदेश अब भारत के जीआई मानचित्र पर एक उभरता हुआ केंद्र बन गया है। दाओ अब राज्य के अन्य सांस्कृतिक उत्पादों जैसे वाक्रो ऑरेंज, इडु मिश्मी वस्त्र, खामती चावल, याक चुर्पी और वांचो लकड़ी शिल्प की सूची में शामिल हो गया है। राज्य सरकार का लक्ष्य 2030 तक 50 जीआई प्रमाणित उत्पादों की सूची तैयार करना है। दाओ की इस मान्यता से न केवल पारंपरिक धातुकला को नई पहचान मिलेगी, बल्कि यह जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक विरासत और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त करेगी।