अरावली की नई परिभाषा पर हरियाणा सरकार का निर्णय: संरक्षण या विनाश का मार्ग?

अरावली की नई परिभाषा पर हरियाणा सरकार का निर्णय: संरक्षण या विनाश का मार्ग?

हरियाणा सरकार ने हाल ही में अरावली पर्वतमाला और श्रृंखलाओं की परिभाषा में एक बड़ा बदलाव करते हुए इसमें न्यूनतम भूवैज्ञानिक आयु और ऊंचाई की शर्तें जोड़ दी हैं। यह निर्णय विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों के लिए चिंता का कारण बन गया है क्योंकि इससे गुरुग्राम सहित कई वन क्षेत्रों को अरावली की सुरक्षा से बाहर कर दिया जा सकता है।

नई परिभाषा: क्या है बदलाव?

हरियाणा के खनन और भूविज्ञान विभाग द्वारा प्रस्तावित नई परिभाषा के अनुसार:

  • केवल वे पहाड़ियाँ जो अपने आसपास की ज़मीन से कम से कम 100 मीटर ऊँची हों
  • और जिनमें 1 अरब वर्ष या उससे अधिक पुराने चट्टानों (Aravalli Supergroup और Delhi Supergroup) का निर्माण हो
  • वही ‘अरावली’ मानी जाएँगी।

इसमें Erinpura ग्रेनाइट और Malani रयोलाइट जैसी Neoproterozoic चट्टानों को बाहर रखा गया है क्योंकि ये अपेक्षाकृत नई और ओरोजेनिक गतिविधियों (पर्वत निर्माण) से असंबद्ध मानी गई हैं।

क्या होगा असर?

विशेषज्ञों का मानना है कि यह परिभाषा:

  • गुरुग्राम, फरीदाबाद और नूह जैसे इलाकों की कम ऊँचाई वाली पहाड़ियों और वन क्षेत्रों को अरावली की श्रेणी से बाहर कर देगी।
  • इसका सीधा असर कानूनी संरक्षण पर पड़ेगा, जिससे ये क्षेत्र विकास, रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए खोले जा सकते हैं।
  • 1992 की अरावली अधिसूचना और सुप्रीम कोर्ट के आदेश, जो इन इलाकों में खनन और निर्माण पर रोक लगाते हैं, इन पर अब प्रभाव नहीं पड़ेगा।

विशेषज्ञों की आपत्तियाँ

  • एम.डी. सिन्हा, पूर्व वन संरक्षक (दक्षिण हरियाणा) का कहना है: “संरक्षण चट्टानों की उम्र नहीं, बल्कि जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र — झाड़ियाँ, जैव विविधता और जल पुनर्भरण की क्षमता — का होना चाहिए।”
  • आर.पी. बलवान, सेवानिवृत्त वन अधिकारी ने कहा: “यह तकनीकी सुधार नहीं, बल्कि नीतिगत बदलाव है जो तीन दशकों की कानूनी सुरक्षा को समाप्त कर सकता है।”
  • उन्होंने यह भी प्रश्न उठाया कि खनन विभाग की बजाय यह कार्य पर्यावरण या वन विभाग को करना चाहिए था।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • अरावली पर्वतमाला पृथ्वी की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है।
  • यह श्रृंखला गुजरात से दिल्ली तक फैली हुई है और थार रेगिस्तान को दिल्ली-एनसीआर में फैलने से रोकने में सहायक है।
  • 1992 की अरावली अधिसूचना के तहत इस क्षेत्र में खनन और अतिक्रमण पर रोक है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2024 को सभी संबंधित राज्यों को अरावली की एक समान परिभाषा तैयार करने का निर्देश दिया था।
Originally written on October 9, 2025 and last modified on October 9, 2025.

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