अरावली की चट्टानों से मिला नया पौधा: ‘पोर्टुलाका भारत’ से खुला जैव विविधता का नया अध्याय

राजस्थान के जयपुर के समीप अरावली की शुष्क और पथरीली पहाड़ियों में एक नयी पुष्पीय पौधा प्रजाति की खोज ने भारत की छिपी जैव विविधता की एक और परत को उजागर किया है। ‘पोर्टुलाका भारत’ (Portulaca bharat) नामक यह पौधा केवल एक स्थान पर पाया गया है और इसे भारतीय स्थानिक (endemic) प्रजातियों की सूची में शामिल किया गया है।
पोर्टुलाका भारत: एक दुर्लभ खोज
इस पौधे की खोज सतपुड़ा जैव विविधता संरक्षण समिति (SBCS) के सदस्य निशांत चौहान ने की थी। उन्होंने यह पौधा जयपुर के बाहरी क्षेत्र में स्थित ऐतिहासिक गाल्टाजी मंदिर की पथरीली पहाड़ियों पर एक चट्टान की दरार से निकलता देखा। पौधे को हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर और फिर लखनऊ में नियंत्रित वातावरण में उगाकर उसके पुष्पन और आकृतिक गुणों की पुष्टि की गई।
पोर्टुलाका भारत की विशेषताएं:
- पत्तियाँ विपरीत (opposite) और थोड़ा अवतल (concave) हैं।
- फूल हल्के पीले रंग के होते हैं, जो ऊपर की ओर क्रीम रंग में बदलते हैं।
- पुंकेसरों पर ग्रंथियुक्त रोयें (glandular hairs) पाए गए हैं।
- इसकी जड़ें मोटी और रस-संग्रही (succulent) हैं।
वैज्ञानिक और संरक्षण दृष्टिकोण
इस खोज को अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिका Phytotaxa में प्रकाशित किया गया है। IUCN की रेड लिस्ट के अनुसार इसे “डेटा डिफिशिएंट” श्रेणी में रखा गया है क्योंकि इसकी आबादी केवल एक ज्ञात स्थल तक सीमित है — और वह भी मात्र 10 पौधों की संख्या में।
पोर्टुलाका जीनस के अंतर्गत वर्तमान में विश्वभर में लगभग 153 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो मुख्यतः उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होती हैं। ये पौधे अपने जल-संग्रहण की क्षमता और कठोर पर्यावरण में जीवित रहने की विशेषता के लिए जाने जाते हैं। भारत में अभी तक इस जीनस की 11 प्रजातियाँ ज्ञात हैं, जिनमें 4 स्थानिक हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- पोर्टुलाका भारत केवल अरावली की गाल्टाजी पहाड़ियों में पाया गया है।
- यह प्रजाति IUCN की डेटा डिफिशिएंट श्रेणी में रखी गई है।
- खोजकर्ता निशांत चौहान इससे पहले हिमाचल में संकटग्रस्त Commiphora wightii पौधे की सफल ex situ पुनःस्थापना कर चुके हैं।
- पोर्टुलाका जीनस की 153 प्रजातियाँ वैश्विक स्तर पर ज्ञात हैं, जिनमें से 11 भारत में पाई जाती हैं।
जैव विविधता संरक्षण की पुकार
अरावली पर्वतमाला पृथ्वी की सबसे प्राचीन भूगर्भीय संरचनाओं में से एक है और इसमें अनेक माइक्रो-एंडेमिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। पोर्टुलाका भारत की खोज इस बात का संकेत है कि इन उपेक्षित शुष्क क्षेत्रों में अभी भी बहुत-सी जैव विविधता छिपी हुई है, जिसकी खोज और संरक्षण की आवश्यकता है।
इस खोज से यह स्पष्ट होता है कि भारत की प्राकृतिक धरोहर आज भी उद्घाटित हो रही है, और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इन दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण हेतु ठोस कदम उठाएं — ताकि प्रकृति की यह अनमोल निधि आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सके।