अमेरिका-रूस वार्ता की असफलता और भारत पर इसके संभावित प्रभाव

अमेरिका-रूस वार्ता की असफलता और भारत पर इसके संभावित प्रभाव

हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच अलास्का में बहुचर्चित बैठक के बावजूद यूक्रेन युद्ध में कोई ठोस प्रगति नहीं हो सकी। ट्रंप द्वारा युद्धविराम की अपील को पुतिन ने अनदेखा किया, और बैठक के बाद जो छवि उभरी, उसमें पुतिन को मंच साझा करने का लाभ मिला, जबकि अमेरिका को कोई ठोस नतीजा नहीं मिला। इस कूटनीतिक गतिरोध के असर का एक सिरा भारत तक भी पहुंचता है, खासकर उस अतिरिक्त 25% अमेरिकी टैरिफ को लेकर जो भारतीय तेल आयात पर लागू हो सकता है।

रूस-यूक्रेन युद्ध पर वार्ता की विफलता और पुतिन की स्थिति

अलास्का बैठक से पूर्व ट्रंप ने रूस पर कड़ा रुख अपनाने की धमकी दी थी, लेकिन बैठक के बाद न तो कोई ठोस निर्णय हुआ और न ही किसी भविष्य की बैठक की घोषणा। पुतिन को प्राथमिकता से बोलने का मौका मिला और ट्रंप ने थके हुए स्वर में बिना पत्रकारों के प्रश्नों के जवाब दिए, जिससे अमेरिका की स्थिति कमजोर प्रतीत हुई। यूक्रेन और यूरोपीय देशों के लिए यह राहत की बात रही कि ट्रंप ने युद्धविराम के बदले में कोई जमीन सौंपने जैसा समझौता नहीं किया।

भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर असर

भारत ने उम्मीद जताई थी कि अगर अमेरिका और रूस के बीच कोई समझौता होता, तो ट्रंप प्रशासन भारत पर लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ को हटाने या टालने पर विचार कर सकता था। यह टैरिफ, जो 27 अगस्त से प्रभावी हो सकता है, अमेरिकी दबाव का एक साधन है—रूस से भारत के तेल आयात को कम करने और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए।
लेकिन ट्रंप के बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि रूस ने भारत को तेल ग्राहक के रूप में “खो दिया”, और अमेरिकी वित्त सचिव स्कॉट बेसेन्ट द्वारा भारत पर टैरिफ बढ़ाने की चेतावनी, भारत के लिए चिंता का विषय हैं। अमेरिका ने यूरोपीय संघ से भी भारत पर इसी प्रकार का सेकेंडरी लेवी लगाने की मांग की है।

भारत की ऊर्जा नीति और रूस से तेल आयात

रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले भारत की तेल आपूर्ति में रूस की भागीदारी 2% से भी कम थी। लेकिन पश्चिमी देशों द्वारा रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाने के बाद, रूस ने भारत जैसे देशों को छूट दी, जिससे वह भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। वर्तमान में भारत के कुल तेल आयात का लगभग 35-40% हिस्सा रूस से आता है।
हालांकि, अमेरिका की नाराजगी के बीच भारत ने यह स्पष्ट किया है कि उसने कभी भी किसी प्रतिबंधित तेल की खरीद नहीं की है और वह केवल वहां से तेल खरीदेगा जहां से उसे सबसे अच्छा सौदा मिलेगा। भारतीय रिफाइनरियों के अनुसार, हाल ही में रूसी तेल आयात में जो गिरावट आई है, वह अमेरिकी दबाव के कारण नहीं बल्कि रूस द्वारा दी जाने वाली छूट में कमी के कारण है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल खरीद के लिए 25% सेकेंडरी टैरिफ लगाया है।
  • रूस वर्तमान में भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है, कुल आयात का 35-40%।
  • रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी केवल 2% थी।
  • रूसी तेल पर कोई सीधा वैश्विक प्रतिबंध नहीं है, केवल मूल्य सीमा और परिवहन नियम लागू हैं।

अमेरिका और रूस के बीच तनावपूर्ण वार्ता से भारत की स्थिति और अधिक जटिल हो गई है। जहां एक ओर भारत वैश्विक ऊर्जा स्थिरता के लिए जिम्मेदार खरीदार के रूप में अपनी छवि बनाए रखना चाहता है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को भी संतुलित रखना आवश्यक है। आगामी सप्ताह और महीने इस बात के निर्णायक होंगे कि भारत किस प्रकार अपने कूटनीतिक और व्यापारिक हितों की रक्षा करता है और क्या अमेरिका अपने टैरिफ निर्णय पर पुनर्विचार करता है।

Originally written on August 18, 2025 and last modified on August 18, 2025.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *