अमेरिका-जापान समझौता: दुर्लभ खनिजों में चीन की पकड़ को चुनौती
दुनिया की आपूर्ति शृंखलाओं को पुनर्संरचित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तहत अमेरिका और जापान ने दुर्लभ खनिजों और आवश्यक खनिजों तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एक नया समझौता किया है। यह समझौता टोक्यो में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान घोषित किया गया, और इसे चीन की अत्यधिक निर्भरता को कम करने की वाशिंगटन की रणनीति का अहम हिस्सा माना जा रहा है।
आपूर्ति शृंखला की सुरक्षा के लिए रणनीतिक करार
यह फ्रेमवर्क समझौता टोक्यो के अकासाका पैलेस में अंतिम रूप दिया गया, जिसका उद्देश्य दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति शृंखला की “लचीलापन और सुरक्षा” सुनिश्चित करना है। जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री साने ताकाइची ने इसे अमेरिका-जापान संबंधों के “नए स्वर्ण युग” की शुरुआत बताया। राष्ट्रपति ट्रंप ने इस साझेदारी को “दुनिया का सबसे बड़ा गठबंधन” बताते हुए भारत-प्रशांत क्षेत्र में जापान को पूर्ण समर्थन देने का आश्वासन दिया।
यह समझौता मलेशिया और थाईलैंड के साथ हस्ताक्षरित समान समझौतों के बाद आया है, और अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया के $8.5 अरब के हालिया खनिज समझौते पर आधारित है। इसका उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में खनिज आपूर्ति का विविधीकरण और स्थायित्व सुनिश्चित करना है।
चीन की पकड़ और वैश्विक चिंता
यह समझौता ऐसे समय में हुआ है जब चीन की दुर्लभ खनिज बाजार पर मजबूत पकड़ को लेकर वैश्विक चिंता बढ़ रही है। वर्तमान में चीन वैश्विक दुर्लभ खनिज खनन का लगभग 70% और रिफाइनिंग क्षमता का 90% नियंत्रित करता है। इन खनिजों का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों, सेमीकंडक्टर्स, नवीकरणीय ऊर्जा और रक्षा प्रणालियों में होता है।
हाल ही में चीन द्वारा इन खनिजों के निर्यात पर नियंत्रण सख्त किए जाने से वैश्विक आपूर्ति में रुकावट की आशंका बढ़ गई है। अमेरिका के वित्त सचिव स्कॉट बेसेंट ने इसे “वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर लक्षित तोप” बताया।
आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव
विशेषज्ञों के अनुसार यह समझौता केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक महत्व भी रखता है। जापान जैसे तकनीकी रूप से समृद्ध देश के साथ साझेदारी करके अमेरिका न केवल कच्चे माल की पहुंच सुनिश्चित करना चाहता है, बल्कि रीसाइक्लिंग और उन्नत निर्माण क्षमताओं का विकास भी करना चाहता है।
हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि चीन की मौजूदा बढ़त को चुनौती देना आसान नहीं है और वैकल्पिक आपूर्ति शृंखलाएं स्थापित करने में एक दशक तक का समय लग सकता है। लेकिन यह समझौता अमेरिका को भविष्य की कूटनीतिक बातचीत में चीन के सामने एक मजबूत स्थिति प्रदान कर सकता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- अमेरिका और जापान ने अक्टूबर 2025 में दुर्लभ खनिज समझौते पर हस्ताक्षर किए।
- यह करार राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टोक्यो यात्रा के दौरान हुआ।
- चीन वैश्विक दुर्लभ खनिज खनन का 70% और रिफाइनिंग का 90% नियंत्रित करता है।
- यह समझौता अमेरिका द्वारा मलेशिया, थाईलैंड और ऑस्ट्रेलिया के साथ किए गए पूर्व समझौतों की श्रृंखला का हिस्सा है।
यह समझौता न केवल वैश्विक व्यापार और खनिज रणनीति को पुनर्परिभाषित करता है, बल्कि अमेरिका-जापान के बीच बढ़ती कूटनीतिक गहराई को भी दर्शाता है। प्रधानमंत्री ताकाइची द्वारा ट्रंप को अमेरिका की 250वीं वर्षगांठ पर 250 चेरी के पेड़ और आतिशबाजी भेंट करने की सांकेतिक कूटनीति ने इस साझेदारी को और भी उल्लेखनीय बना दिया। यह पहल वैश्विक भू-राजनीति में लोकतांत्रिक देशों के एकजुट होने का संकेत देती है।