अनुसूचित जाति अत्याचार मामले में अग्रिम जमानत रद्द: सुप्रीम कोर्ट का सख्त संदेश

1 सितंबर को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें एक अनुसूचित जाति (SC) अत्याचार मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत दी गई थी। किरण बनाम राजकुमार जैन मामले में न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अंतर्गत प्रथम दृष्टया अपराध बनता है, तो धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत पूरी तरह निषिद्ध है।

मामला क्या था?

दिनांक 26 नवंबर 2024 को पीड़ित किरण ने प्राथमिकी दर्ज कराई कि विधानसभा चुनावों में निर्दिष्ट उम्मीदवार को वोट देने से इंकार करने पर आरोपी राजकुमार जैन और अन्य लोगों ने उनके परिवार पर जानलेवा हमला किया। रिपोर्ट के अनुसार:

  • लोहे की रॉड से हमला
  • जातिसूचक गालियाँ
  • पीड़िता की माँ और चाची से छेड़छाड़
  • मंगलसूत्र की लूट
  • पेट्रोल से घर जलाने की धमकी

इस घटना के चश्मदीद स्वतंत्र गवाह भी मौजूद थे।

न्यायिक कार्यवाही का क्रम

  • अपर सत्र न्यायाधीश, परांडा ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज की।
  • बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद पीठ) ने मामले को “राजनीतिक रूप से प्रेरित” और “अतिरंजित” बताते हुए जमानत मंजूर कर ली।
  • सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी गई।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और कारण

सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया:

  • SC/ST एक्ट की धारा 18, अग्रिम जमानत (CrPC की धारा 438) को निषिद्ध करती है यदि FIR में प्रथम दृष्टया गंभीर आरोप बनते हैं।
  • हाईकोर्ट ने सबूतों की गहराई से जांच कर “मिनी ट्रायल” की तरह कार्य किया, जो कि अग्रिम जमानत की प्रक्रिया में उचित नहीं है।
  • सार्वजनिक रूप से जातिसूचक अपमान, स्वतंत्र गवाहों की उपस्थिति, मेडिकल साक्ष्य और राजनीतिक प्रतिशोध जैसे सभी तत्व इस मामले को SC/ST एक्ट के दायरे में लाते हैं

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • SC/ST (Prevention of Atrocities) Act, 1989 की धारा 18 अग्रिम जमानत को प्रतिबंधित करती है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने State of M.P. v. Ram Krishna Balothia (1995), Vilas Pawar (2012), और Prathvi Raj Chauhan (2020) मामलों में इस निषेध को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया है।
  • धारा 3(1)(r) — यदि अपमान “सार्वजनिक दृश्य में” हो, तो यह अपराध माना जाता है।
  • धारा 3(1)(o) — SC/ST मतदाताओं को मतदान के अधिकार से रोकना या प्रतिशोध लेना दंडनीय है।

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