अनिवार्य आवाज के नमूने गोपनीयता का उल्लंघन नहीं करते हैं

रितेश सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि वॉयस सैंपल के लिए बाध्य करना निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए अवलोकन
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता में एक सदी से अधिक पुराने शून्य को भरने वाले एक ऐतिहासिक फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि एक व्यक्ति को अपराध जाँच के लिये आवाज़ का नमूना देने के लिये विवश किया जा सकता है और यह संविधान के अनुच्छेद 20 के तहत आत्म-दोषारोपण संबंधी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
- न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 20 (3) पर कोई प्रत्यक्ष अवलोकन नहीं दिया, जो एक अभियुक्त को खुद के खिलाफ गवाह बनने के लिये मज़बूर होने से बचाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत जारी किया है।
- न्यायालय ने संसद से आपराधिक प्रक्रिया संहिता में अपेक्षित परिवर्तन करने का आह्वान किया है, ऐसा होने तक मजिस्ट्रेट के पास आदेश देने की शक्ति होगी।
- न्यायालय के अनुसार निजता के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) को निरपेक्ष नहीं माना जा सकता है और इसे सार्वजनिक हित के लिये सहज होना चाहिये।
Originally written on
August 7, 2019
and last modified on
August 7, 2019.