अदानी मानहानि मामले में कोर्ट का स्टे: पत्रकारिता की स्वतंत्रता बनाम आर्थिक दबाव

अदानी मानहानि मामले में कोर्ट का स्टे: पत्रकारिता की स्वतंत्रता बनाम आर्थिक दबाव

सितंबर 2025 में दिल्ली की एक अदालत ने अदानी एंटरप्राइजेज द्वारा पत्रकारों के खिलाफ दायर मानहानि मुकदमे में जारी एकतरफा प्रतिबंधात्मक आदेश (ex-parte gag order) को रद्द कर दिया। यह फैसला न केवल पत्रकारों को राहत देता है, बल्कि भारत में मीडिया की स्वतंत्रता और न्यायिक विवेक के संतुलन को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस को पुनर्जीवित करता है।

क्या है SLAPP मुकदमा?

‘SLAPP’ (Strategic Litigation against Public Participation) एक ऐसा मुकदमा होता है, जिसे बड़े आर्थिक और राजनीतिक ताकत वाले समूह सार्वजनिक भागीदारी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। मई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने Bloomberg बनाम Zee Entertainment केस में स्पष्ट रूप से कहा था कि इस तरह के मुकदमे पत्रकारों और सिविल सोसाइटी के लोगों को डराने के लिए दायर किए जाते हैं, ताकि वे जनहित के मामलों में सक्रिय न हो सकें।

कोर्ट की चेतावनी: पूर्व-ट्रायल रोक, अभिव्यक्ति की ‘मृत्युदंड’

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने अपने निर्णय में कहा था कि:

  • पूर्व-ट्रायल ‘ex-parte injunctions’ पत्रकारिता की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से बाधित करती हैं।
  • कोई भी स्थायी या अस्थायी रोक केवल तभी दी जानी चाहिए जब सामग्री स्पष्ट रूप से झूठी या दुर्भावनापूर्ण हो।
  • पत्रकारिता की अभिव्यक्ति को संविधानिक संरक्षण प्राप्त है, और अदालतों को इस संतुलन को समझदारी से साधना चाहिए।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • SLAPP का पूरा नाम है: Strategic Litigation against Public Participation।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में Bloomberg बनाम Zee Entertainment मामले में SLAPP पर विस्तार से विचार किया।
  • ‘Bonnard Principle’ (UK कानून से) के अनुसार मानहानि में रोक केवल असाधारण स्थितियों में ही दी जानी चाहिए।
  • भारत के संविधान में अनुच्छेद 19(1)(a) पत्रकारिता की स्वतंत्रता की रक्षा करता है।
Originally written on September 20, 2025 and last modified on September 20, 2025.

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