अंबुबाची महायोग: कामाख्या में सजीव होती नारी शक्ति की पौराणिक साधना

जैसे ही मानसून की पहली बूँदें असम की नीलांचल पहाड़ियों को छूती हैं, गुवाहाटी स्थित कामाख्या धाम लालिमा से जगमगाने लगता है। लाल वस्त्रधारी साधु-संत, मंत्रों की गूंज, धूप की खुशबू और जलते दीपकों की रौशनी — यह सब संकेत देता है कि अंबुबाची महायोग प्रारंभ हो चुका है। यह पर्व तंत्र, साधना और नारी सृजन शक्ति का जीवंत संगम है।
अंबुबाची यात्रा: लाल रंग की आस्था
हर वर्ष आषाढ़ मास में कामाख्या में लगने वाला अंबुबाची मेला साधुओं, तांत्रिकों और श्रद्धालुओं का आध्यात्मिक संगम होता है। 2025 में अनुमानित 15 लाख श्रद्धालु यहां पहुंचे, जिनमें से लगभग एक चौथाई साधु और तांत्रिक थे। लाल वस्त्र इस पर्व की मूल भावना — सृजन, ऊर्जा और नारीत्व — का प्रतीक बनते हैं।
पौराणिक मान्यता: जब देवी होती हैं रजस्वला
कामाख्या को शक्ति की परम अभिव्यक्ति माना जाता है। मान्यता है कि सती के शरीर के टुकड़े जब शिव के तांडव से पृथ्वी पर गिरे, तब उनका योनि-अंग नीलांचल की पहाड़ी पर गिरा — यही ‘योनि पीठ’ या ‘जोनि पीठ’ कहलाया। अंबुबाची के दौरान माना जाता है कि देवी स्वयं रजस्वला होती हैं और तीन दिनों के लिए विश्राम करती हैं।
परंपरा और प्रतीक: तीन दिन का मौन
इन तीन दिनों में मंदिर का गर्भगृह बंद रहता है। देवी के प्रतीक चट्टान पर सफेद वस्त्र चढ़ाया जाता है। कोई पूजा नहीं होती, कृषि कार्य भी रुक जाते हैं — इसे नारी शरीर के प्रति सम्मान का प्रतीक माना जाता है, न कि निषेध का। चौथे दिन देवी की ‘शुद्धि’ के बाद मंदिर फिर से खुलता है और उत्सव प्रारंभ होता है।
रक्त वस्त्र: देवी की शक्ति का प्रतीक प्रसाद
तीन दिनों तक चढ़े सफेद वस्त्र का रंग अब लाल हो जाता है — इसे ‘रक्त वस्त्र’ कहा जाता है। यह वस्त्र देवी के रज का प्रतीक माना जाता है और इसे प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है। श्रद्धालु इसे अपने पास तावीज़ की तरह रखते हैं, प्रजनन, सुरक्षा और समृद्धि के लिए शुभ मानते हैं।
तांत्रिक साधना और गूढ़ अनुष्ठान
कामाख्या तांत्रिक परंपरा का एक प्रमुख केंद्र है। अंबुबाची के तीन दिन तांत्रिक साधकों के लिए विशेष होते हैं। यहां साधना, योग और तपस्या से गूढ़ ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास होता है। देश-विदेश से साधक यहां आते हैं, और ऊर्जा का अनुभव करते हैं जो उन्हें आत्मिक ऊंचाइयों की ओर ले जाती है।
भ्रांतियाँ, विज्ञान और प्रतीकवाद
कुछ लोग रक्त वस्त्र को देवी के वास्तविक रज से जोड़ते हैं, जिसे मंदिर प्रशासन ने कई बार खंडन किया है। यह वस्त्र प्रतीकात्मक होता है, और लाल रंग देवी की रजस्वला अवस्था का सांकेतिक रूप है। ब्रह्मपुत्र नदी का रंग भी इन दिनों लाल दिखता है, जिसे भक्त दिव्यता मानते हैं, जबकि वैज्ञानिक इसे खनिजों और मिट्टी के बहाव से जोड़ते हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- कामाख्या मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है, जिसे ‘योनि पीठ’ भी कहा जाता है।
- अंबुबाची मेला असम का सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव है, जिसमें लाखों लोग हिस्सा लेते हैं।
- रक्त वस्त्र केवल मंदिर द्वारा ही प्रमाणित रूप से वितरित होता है; ऑनलाइन धोखाधड़ी से सतर्क रहना जरूरी है।
- अंबुबाची के दौरान शादी, पूजा और भूमि कार्य वर्जित माने जाते हैं।
अंबुबाची महायोग न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह समाज को यह याद दिलाने वाला अवसर भी है कि नारीत्व, सृजन और रजस्वला अवस्था किसी निषेध का विषय नहीं, बल्कि पूजा का आधार है। कामाख्या में यह पर्व नारी शक्ति के उस रूप को सामने लाता है, जिसे सदियों तक छिपाया गया — अब वह लालिमा में, श्रद्धा में, और शक्ति में प्रकट होती है।