अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त भारत का पहला डुगोंग संरक्षण रिजर्व: पाल्क खाड़ी की वैश्विक पहचान

भारत के समुद्री संरक्षण प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी मान्यता मिली है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने भारत के पहले डुगोंग संरक्षण रिजर्व को आधिकारिक रूप से मान्यता देते हुए एक प्रस्ताव को अपनाया है। यह प्रस्ताव अबू धाबी में आयोजित IUCN वर्ल्ड कंज़र्वेशन कांग्रेस 2025 के दौरान पारित किया गया, जिसे ओमकार फाउंडेशन द्वारा प्रस्तुत किया गया था और इसे विश्वभर के सदस्यों का व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ।

डुगोंग संरक्षण रिजर्व की स्थापना और महत्व

तमिलनाडु सरकार ने 21 सितंबर, 2022 को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत डुगोंग संरक्षण रिजर्व की स्थापना की थी। यह रिजर्व पाल्क खाड़ी के उत्तरी भाग में स्थित है और इसका क्षेत्रफल 448.34 वर्ग किलोमीटर है। यह क्षेत्र 12,250 हेक्टेयर से अधिक सीग्रास (समुद्री घास) मैदानों का घर है, जो डुगोंग (Dugong dugon) जैसे संकटग्रस्त समुद्री स्तनधारी के लिए मुख्य आहार क्षेत्र हैं। डुगोंग्स को IUCN रेड लिस्ट में “अति संकटग्रस्त” प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
सीग्रास न केवल डुगोंग्स को भोजन प्रदान करता है, बल्कि यह जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अनेक समुद्री जीवों को आवास प्रदान करता है।

IUCN प्रस्ताव और संरक्षण रणनीतियाँ

IUCN द्वारा अपनाए गए प्रस्ताव में पाल्क खाड़ी में पर्यावास क्षरण, विनाशकारी मछली पकड़ने की पद्धतियों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर चिंता जताई गई। इन खतरों के कारण डुगोंग की आबादी और क्षेत्र की पारिस्थितिकीय स्थिरता को गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है।
प्रस्ताव में भारत सरकार, तमिलनाडु सरकार और स्थानीय संगठनों से मिलकर समुद्री संसाधनों के टिकाऊ उपयोग और सामुदायिक नेतृत्व में संरक्षण रणनीतियों को प्राथमिकता देने का आह्वान किया गया है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • डुगोंग संरक्षण रिजर्व भारत का पहला समुद्री जीव आधारित संरक्षण क्षेत्र है, जिसकी स्थापना तमिलनाडु में हुई।
  • डुगोंग एक शाकाहारी समुद्री स्तनधारी है, जिसे “समुद्र का किसान” कहा जाता है क्योंकि वह सीग्रास की कटाई करके उसके पुनरुत्थान में सहायता करता है।
  • IUCN की सदस्य सरकारों में से 98% और गैर-सरकारी संगठनों में से 94.8% ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया।
  • संरक्षण के लिए बांस और नारियल की रस्सी से बने फ्रेम का उपयोग करके सीग्रास पुनर्स्थापन तकनीक को एक नवाचार के रूप में अंतरराष्ट्रीय सराहना मिली।

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