अंटार्कटिका में भारत की नई वैज्ञानिक उपलब्धि: मैत्री-II अनुसंधान केंद्र को मिली मंजूरी

अंटार्कटिका में भारत की नई वैज्ञानिक उपलब्धि: मैत्री-II अनुसंधान केंद्र को मिली मंजूरी

भारत ने दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र, अंटार्कटिका में अपने वैज्ञानिक अनुसंधान को नई दिशा देने की तैयारी कर ली है। वित्त मंत्रालय ने ‘मैत्री-II’ नामक एक नए अनुसंधान केंद्र की स्थापना के लिए मंजूरी प्रदान की है, जो पूर्वी अंटार्कटिका में वर्ष 2029 तक पूर्ण रूप से कार्यरत होगा। यह केंद्र भारत का चौथा अंटार्कटिक अनुसंधान अड्डा होगा और इसका संचालन गोवा स्थित राष्ट्रीय ध्रुवीय और समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCPOR) द्वारा किया जाएगा।

मैत्री-II की रूपरेखा और महत्व

मैत्री-II परियोजना को वर्ष 2023 में प्रस्तावित किया गया था और अक्टूबर 2025 में इसे ‘सैद्धांतिक मंजूरी’ प्राप्त हुई। इसकी अनुमानित लागत लगभग ₹2000 करोड़ है, जो अगले सात वर्षों में खर्च की जाएगी। यह नया केंद्र मैत्री की तुलना में बड़ा और तकनीकी दृष्टि से अधिक उन्नत होगा। इसके निर्माण में हरित ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग किया जाएगा, जिससे यह एक पर्यावरण-संवेदनशील केंद्र बनेगा।
परियोजना का उद्देश्य न केवल उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करना है, बल्कि भारत की ध्रुवीय उपस्थिति को भी सुदृढ़ करना है। यह केंद्र स्वचालित उपकरणों से युक्त होगा जो निर्जन स्थिति में भी डेटा संग्रह और संप्रेषण कर सकेंगे।

वर्तमान भारतीय अनुसंधान केंद्र

  • दक्षिण गंगोत्री: भारत का पहला अंटार्कटिक स्टेशन, अब बंद।
  • मैत्री: 1989 से चालू, शिर्माचर ओएसिस क्षेत्र में स्थित।
  • भारती: 2012 से संचालन में, पूर्वी अंटार्कटिका में स्थित।

मैत्री वर्तमान में भारत के वैज्ञानिकों को अत्यधिक महत्वपूर्ण जलवायु, भूगर्भीय और जैवविविधता शोध का अवसर प्रदान करता है, परंतु यह अब पुराना हो चुका है और इसके अपशिष्ट प्रबंधन में कई खामियां सामने आई हैं। इसलिए मैत्री को भविष्य में ग्रीष्मकालीन शिविर के रूप में रखा जाएगा, जबकि स्थायी शोध के लिए मैत्री-II को विकसित किया जाएगा।

निर्माण की प्रक्रिया और चुनौतियाँ

मैत्री-II का निर्माण अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य होगा, जिसमें तीन प्रमुख चरण होंगे:

  1. ठेका और स्थल मूल्यांकन: आगामी 18 महीनों में अनुबंध वितरण, स्थल सर्वेक्षण और विशेष सड़क निर्माण होगा।
  2. सामग्री की आपूर्ति: अगले 18 महीनों में पूर्व-निर्मित सामग्री दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन से भारतीय बैरियर (भारतीय आपूर्ति अड्डा) होते हुए स्थल तक पहुंचाई जाएगी।
  3. स्थापना और संयोजन: अंतिम चरण में शेष सामग्री पहुँचाकर शोध केंद्र का निर्माण किया जाएगा।

निर्माण केवल दक्षिणी गोलार्ध की गर्मियों में (अक्टूबर से मार्च) ही संभव होगा, जब मौसम अनुकूल रहता है। इसके अलावा, जर्मन कंपनी द्वारा डिजाइन की गई संरचना अत्यधिक सर्दी और तूफानों का सामना करने में सक्षम होगी।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • मैत्री-II भारत का चौथा अंटार्कटिक अनुसंधान स्टेशन होगा।
  • ₹2000 करोड़ की लागत वाली यह परियोजना जनवरी 2029 तक पूरी होने की योजना है।
  • भारत ने अंटार्कटिका में अनुसंधान कार्य की शुरुआत 1980 के दशक में की थी।
  • अंटार्कटिका में पृथ्वी का लगभग 75% ताजे पानी बर्फ के रूप में संग्रहित है।
Originally written on October 14, 2025 and last modified on October 14, 2025.

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