वैवाहिक मामलों में गोपनीय रिकॉर्डिंग अब स्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा है कि पति-पत्नी के बीच गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत वैवाहिक विवादों, जैसे कि तलाक के मामलों में, अदालत में साक्ष्य के रूप में मान्य होगी। यह निर्णय 2021 के पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए दिया गया है, जिसमें एक पति को अपनी पत्नी के साथ की गई गुप्त टेलीफोनिक बातचीत को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने से रोका गया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने भारतीय कानून में “वैवाहिक विशेषाधिकार” (spousal privilege) की परंपरागत परिभाषा को नया रूप दे दिया है।
वैवाहिक विशेषाधिकार की अवधारणा
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 के अनुसार, विवाह के दौरान पति-पत्नी के बीच हुई बातचीत को अदालत में बिना दूसरे की सहमति के प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। यह प्रावधान इस विचार पर आधारित है कि वैवाहिक जीवन में गोपनीयता का अधिकार सुरक्षित रहना चाहिए। हालांकि, इस धारा में एक अपवाद यह भी है कि जब दोनों पति-पत्नी के बीच कोई विवाद या मुकदमा चल रहा हो, तो उस स्थिति में यह गोपनीयता बाध्यकारी नहीं होती।
तलाक मामलों में इसका क्या मतलब है?
तलाक जैसे पारिवारिक मामलों में, जहां एक पक्ष दूसरे पर आरोप लगाता है, वहां सामान्यतः पत्र, तस्वीरें, गवाहों की गवाही जैसी चीजें साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं। आधुनिक तकनीक के युग में, वॉयस रिकॉर्डिंग, टेक्स्ट मैसेज, वीडियो और ईमेल भी अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। हालांकि, अब तक कई उच्च न्यायालयों ने गोपनीय रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में मान्यता नहीं दी थी क्योंकि इससे निजता का उल्लंघन होता है और ऐसी रिकॉर्डिंग कैसे प्राप्त हुई, यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न बन जाता था।
सुप्रीम कोर्ट ने इसे वैध क्यों ठहराया?
सुप्रीम कोर्ट ने 1973 के एक पुराने फैसले का हवाला दिया जिसमें एक सरकारी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में टेलीफोन रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया था। अदालत ने कहा कि यदि कोई साक्ष्य प्रासंगिक है, स्वतंत्र रूप से प्रमाणित किया जा सकता है और कानूनी मानकों के अंतर्गत आता है, तो उसे अदालत में स्वीकार किया जा सकता है — भले ही वह गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया गया हो।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि गोपनीय रिकॉर्डिंग का उपयोग निजता के उल्लंघन के रूप में जरूर देखा जा सकता है, लेकिन जब मामला न्यायपूर्ण सुनवाई का हो, तो निजता और निष्पक्ष न्याय के बीच संतुलन आवश्यक है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 पति-पत्नी के बीच की गोपनीय बातचीत को संरक्षित करती है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुप्त रिकॉर्डिंग को तीसरे गवाह के समान माना जा सकता है।
- वैवाहिक विशेषाधिकार तलाक मामलों में पूर्ण रूप से लागू नहीं होता, खासकर जब एक पक्ष आरोप लगाता है।
- मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट 2025 के अनुसार, भारत में महिलाओं और पुरुषों के बीच स्मार्टफोन स्वामित्व में 39% का अंतर है।
इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि अदालतें अब पारंपरिक गोपनीयता की अवधारणा को आधुनिक तकनीकी वास्तविकताओं के अनुरूप ढाल रही हैं। यह फैसला न्याय की प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में एक कदम है, लेकिन इसके सामाजिक प्रभाव — खासकर लैंगिक असमानता और तकनीकी पहुंच की दृष्टि से — पर सतत विचार आवश्यक होगा।