गुरुग्राम की मानसूनी बाढ़ की समस्या: आधुनिक नगरीकरण का अधूरा चेहरा

गुरुग्राम, जिसे कभी महाभारत काल के एक पौराणिक गाँव के रूप में जाना जाता था, आज भारत का ‘मिलेनियम सिटी’ कहलाता है। लेकिन इस आधुनिकता की चकाचौंध के पीछे एक गंभीर शहरी संकट छिपा हुआ है — हर साल मानसून के दौरान होने वाली भयंकर बाढ़। वर्षा का औसत मात्र 600 मिमी होने के बावजूद गुरुग्राम में जलभराव, घंटों तक जाम, और करंट लगने जैसी घटनाएं आम हो गई हैं। आखिर क्यों यह हाई इनकम शहर, जिसकी जनसंख्या लगभग 20 लाख है, हर मानसून में पानी में डूब जाता है?

भू-आकृति की अनदेखी

गुरुग्राम का प्राकृतिक ढलान अरावली की पहाड़ियों से उत्तर की ओर है, जहां पानी को नैचुरल तरीके से बहकर नजफगढ़ झील तक पहुंचना चाहिए था। पुराने नक्शों से पता चलता है कि 1920 के दशक में यहां कई जल चैनल थे जो वर्षा जल को नियंत्रित करते थे। लेकिन शहरीकरण के विस्तार में इन चैनलों को मिटा दिया गया। आज गोल्फ कोर्स रोड जैसी मुख्य सड़कें उत्तर-दक्षिण दिशा में हैं, जिससे वर्षा जल का प्रवाह और तेज हो जाता है — खासकर तब जब नालियों की योजना न के बराबर हो।

खंडित शहरी योजना

गुरुग्राम की शहरी योजना का सबसे बड़ा दोष इसकी “प्लग-एंड-प्ले” शैली है, जिसमें एकीकृत मास्टर प्लान की बजाय टुकड़ों में विकास हुआ। हरियाणा सरकार द्वारा 1970 के दशक में निजी बिल्डरों को ज़मीन अधिग्रहण की अनुमति देने के बाद शहर का विकास अनियोजित तरीके से हुआ। परिणामस्वरूप, अजीब आकार के प्लॉट, बिना दिशा वाली सड़कें, और असंगत बुनियादी ढांचा उभरकर आया। इसने गुरुग्राम को एक ऐसा शहर बना दिया है जहां विकास हुआ, लेकिन दिशा के बिना।

कंक्रीट की भरमार

जहां पहले सरसों के खेत होते थे, वहां अब ऊँची-ऊँची इमारतें और राजमार्ग हैं। एक समय में गुरुग्राम में 60 प्राकृतिक जलमार्ग थे, जिनकी संख्या अब चार से भी कम रह गई है। ज़मीन की जल शोषण क्षमता को खत्म कर दिया गया है और बदले में बनाए गए कंक्रीट नालों से जलभराव की समस्या और बढ़ गई है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • गुरुग्राम हर साल लगभग 600 मिमी वर्षा प्राप्त करता है, फिर भी हर मानसून में जलभराव की समस्या होती है।
  • एक समय में गुरुग्राम में 60 से अधिक प्राकृतिक जल चैनल थे, अब सिर्फ चार बचे हैं।
  • अरावली की पहाड़ियों से उत्तर की ओर ढलान गुरुग्राम की प्राकृतिक जल निकासी का मार्ग था।
  • “फ्रेंच ड्रेन्स”, जल सोखने वाले बगीचे, और सही ढलान वाली सड़कें जलभराव से बचने के पारंपरिक समाधान हैं।

गुरुग्राम की स्थिति इस बात की स्पष्ट चेतावनी है कि यदि भू-आकृति, पारिस्थितिकी, और दीर्घकालीन योजना की उपेक्षा की जाए, तो आर्थिक विकास भी शहर को बचा नहीं सकता। भविष्य के लिए जरूरी है कि गुरुग्राम जैसी आधुनिक नगरी में तकनीकी समाधान के साथ पारंपरिक समझ का भी समावेश हो — ताकि मानसून सिर्फ एक ऋतु बने, आपदा नहीं।

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