अब तक का सबसे बड़ा ब्लैक होल विलय: गुरुत्वीय तरंगों से ब्रह्मांड की नई समझ

वैज्ञानिकों ने हाल ही में दो विशाल ब्लैक होल्स के विलय से उत्पन्न गुरुत्वीय तरंगों की खोज की है, जो अब तक दर्ज किए गए ऐसे किसी भी घटना से सबसे बड़ी मानी जा रही है। इस खोज ने न केवल ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने के नए रास्ते खोले हैं, बल्कि यह वर्तमान भौतिकी सिद्धांतों को चुनौती भी दे रही है।

क्या होती हैं गुरुत्वीय तरंगें?

गुरुत्वीय तरंगें स्पेसटाइम में वे लहरें हैं जो अत्यधिक विशाल वस्तुओं की गति से उत्पन्न होती हैं — जैसे कि दो ब्लैक होल्स का टकराव। इन्हें पहली बार अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1915 में अपने सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत (General Theory of Relativity) में परिकल्पित किया था, लेकिन 100 साल बाद 2015 में इन्हें पहली बार अमेरिका के LIGO डिटेक्टर द्वारा मापा गया।

इस खोज में क्या नया है?

हालिया खोज में दो ब्लैक होल्स का विलय देखा गया जिनमें से एक सूर्य से 140 गुना और दूसरा 100 गुना बड़ा था। इनका विलय एक ऐसे ब्लैक होल में हुआ जिसकी द्रव्यमान सूर्य से लगभग 225 गुना अधिक है। पहले की तुलना में यह आकार काफी बड़ा है — 2021 में दर्ज सबसे बड़ी घटना में ब्लैक होल्स का आकार क्रमशः 80 और 65 गुना था।
वैज्ञानिकों की अब तक की समझ के अनुसार, 100 से 150 गुना सूर्य के बराबर द्रव्यमान वाले तारे ब्लैक होल नहीं बनते बल्कि किसी अन्य प्रक्रिया से नष्ट हो जाते हैं। इसलिए, इस दायरे के ब्लैक होल्स का अस्तित्व और उनका विलय असामान्य माना जा रहा है।

खोज के वैज्ञानिक मायने

इस विलय से उत्पन्न गुरुत्वीय तरंगों का एक अन्य विशेष पक्ष यह था कि इन ब्लैक होल्स में से कम से कम एक बहुत तेज गति से घूम रहा था — सामान्य सापेक्षता सिद्धांत में संभव अधिकतम सीमा के पास। इसने वैज्ञानिकों के बीच अत्यधिक उत्सुकता पैदा की है, क्योंकि यह ब्लैक होल के निर्माण और तारों के विकास के मौजूदा मॉडल को पुनः परिभाषित कर सकता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • गुरुत्वीय तरंगें स्पेसटाइम में लहरें होती हैं, पहली बार 2015 में LIGO द्वारा मापी गईं।
  • हाल की खोज में 140 और 100 गुना सूर्य के बराबर ब्लैक होल्स का विलय हुआ।
  • यह विलय सूर्य से 225 गुना बड़े ब्लैक होल का निर्माण करता है।
  • LIGO, Virgo (इटली) और KAGRA (जापान) मिलकर LVK सहयोग बनाते हैं।
  • भारत में LIGO-India परियोजना महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में बन रही है, जो 2030 तक पूर्ण होने की उम्मीद है।

गुरुत्वीय तरंगों का भविष्य

गुरुत्वीय तरंगें वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड को ‘देखने’ का एक नया माध्यम देती हैं — खासकर उन क्षेत्रों में, जहां परंपरागत दूरबीनें काम नहीं कर सकतीं, जैसे ब्लैक होल्स या डार्क मैटर से जुड़े घटनाक्रम। यह खोज न केवल खगोल भौतिकी में मील का पत्थर है, बल्कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति, संरचना और भविष्य की हमारी समझ को भी गहराई से प्रभावित करेगी।

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